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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १७ ] रहा हूँ । इसलिये उसे बड़ा आश्चर्य हुआ जब उसने अनुवीक्षक से देखा कि कीटाणु की संख्या बहुत अधिक घट गयी है । इसपर उसने अपनी यह राय जाहिर की कि कभी-कभी प्रकृति इस तरहके कीटाणुओं को आप ही आप दूर कर देती है । ( ३ ) एक महाशय, जो पहले बहुत ही हृष्टपुष्ट और बलवान थे, करीब दस बरसोंसे बीमारी के कारण बिलकुल काम करनेके लायक न रह गये थे । उनके हृदय में सदा आत्मघात करनेका विचार उठा करता था । वे अपने जीवनसे इतने ऊब गये थे कि आत्मघातके द्वारा दुःखोंसे निवृत्ति चाहते थे । इसलिये बराबर उनके ऊपर कड़ी नजर रखी जाती थी। कई डाक्टरोंने उनकी परीक्षा करके यही कहा कि वे बिलकुल चंगे हैं, हां, उन्माद रोग उन्हें कुछ-कुछ जरूर है, बेहतर है कि वे कुछ दिनों तक पहाड़ों में रहकर अपना दिलबहलाव करें। डाक्टरोंने जैसा कहा उन्होंने वैसा ही किया, पर उनकी हालत में कोई सुधार न हुआ। इसके बाद वे मेरे पास आये। मैंने निश्चय कर लिया कि उनके शरीर में विजातीय द्रव्य के कारण बहुत ज्यादा बाहीपन है । मेरे इलाजसे उन्हें बहुत ज्यादा फायदा हुआ। थोड़े ही दिनों में उनकी हालत बदल गयी। अब वह खुश दिखलाई पड़ने लगे और आत्मघातका विचार उनके दिलसे बिलकुल जाता रहा । इसलिये इलाज के खयाल से रोगकी परीक्षा करनेका पुराना तरीका किसी कामका नहीं है, क्योंकि पुरानी रोति मिथ्या २ For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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