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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ आकृति निदान मनुष्य भी यह कहते हैं कि प्रायः मनुष्योंके कुछ अंगोंमें और अंगोंकी अपेक्षा अधिक उन्नति देखने में आती है, पर वे यह नहीं जानते कि यह बात अस्वाभाविक है, क्योंकि उन्हें यह नहीं मालूम कि इस बातका कारण क्या है । मैंने तो ऐसे बालक देखे हैं जो सात वर्षकी उम्र में बीस वर्षवाले मनुष्यों की तरह समझकी बातें करते थे, पर बादको बड़े होने पर ऐसे बालक अपने साथियोंसे बहुत ही पीछे रहे । यही बात उन प्रतिभाशाली गानेवाले बालकों के बारे में भी कही जा सकती है जिनकी पहले तो बड़ी ख्याति रहती है पर बादको कुछ वर्ष बीतनेपर उनकी कोई याद भी नहीं करता क्योंकि उनमें उस प्रकारकी बुद्धि नहीं रहती जो अच्छा गवैया होने के लिये बहुत जरूरी है । नं० ५२ में पोलर नामक एक बालकका चित्र दिया गया है। उम्र के लिहाज से इस बालक में कहीं अधिक उन्नति दिखलाई पड़ती है । उसकी शारीरिक अवस्थाके बारेमें डाक्टरोंको कुछ भी विचित्रता नहीं मालूम पड़ती। वे उसे एक प्रतिभाशाली बालक समझते हैं। पर प्राकृति विज्ञानकी राय इस सम्बन्ध में भी डाक्टोंकी रायसे भिन्न है। यद्यपि इस बालककी तसवीर हमारे मतलब के मुताबिक नहीं खींची गयी है तथापि उसके उभरे हुए माथेसे हम इस बातका पता लगा सकते हैं कि आँखोंकी भोरे विजातीय द्रव्यका कितना दबाव है । इससे साफ जाहिर है कि इस बालककी पाचन शक्ति अच्छी नहीं है । For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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