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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir asਦ ਲੀ ਸਿੰਕ ਵੀ बार जिसने खास अपने दत्ता पुत्र की स्त्री जाब के साथ - जिसको उसके पति ने तलाक दे दी थी - व्याह कर लिया था। वही - स्सा वनाचार: करने वाला मुहम्मद कैसे पाचर - परमेश्वर का दूत हो सकता है । २२ अब अकबर की धार्मिक नीति के विकास का नया दौर प्रारम हुवा । अभी तक तो इबाखत खाना केवल मुसल्मान विद्वानों और उल्माओं। के लिये ही सुला हुवा था । वे ही वहां वाद विवाद करते थे किन्तु इबादत खाने में हुए इस वाद विवाद का परिणाम यह निकला कि जब : उल्मा, शैख, सैयद वार अन्य विद्वान इस्लाम के सिद्धान्तों को स्पष्ट करने में असमर्थ रहे तब अकबर नै १५७८ से इबादतखाने में हिन्दुओं, पारस्यिो , . बनियाँ, ईसाक्ष्यों के धार्मिक वाचायाँ बार विधानों को धार्मिक गोष्ठियाँ, वाद विवाद और विचार विमर्श के लिये वामंत्रित करने का संकल्प किया। -0 (२३) सूरीश्वर और सम्राट अदादर - हिन्दी अनुवादक कृष्ण लार वर्मा - पृष्ठ - ७७ For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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