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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति वह बच कर भाग गया। इस पर बबुल फजल ने इन सुन्नियों के गुट की प्रांतिया, उनकी कथन - करनी में भेद वादि को उदाहरणां से स्पष्ट किया और अब्दुन्नवी की पोल खोलना शुरू किया । उसने बताया कि बन्नवी ने हाजियों को दिया जाने वाला धन स्वयम ले लिया और यह फतवा दिया कि हज करने से पुण्य के स्थान पर पाप होगा कि मक्का जाने के दोनों मार्ग संक्ट ग्रस्त है । इन सभाओं में एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिये किक्षाण प्रश्न किये जाते थे । मौलाना मुहम्मद हुसैन लिखते है कि हाजी लाहीम सरहिन्दी बड़े गडालू और चक्मा ! देने वाले व्यक्ति थे उन्कोने एक दिन सभा में मिरजा मुफिलिस से पूछा कि मुसा शब्द सीगा २० ( क्रिया का वन, पुरु ण वादि ) क्या है और उसकी व्युत्पत्ति क्या है ? मिरजा ययपि विथा और बुद्धि की सम्पत्ति से बहुत संम्पन्न थे, पर इस प्रश्न के उत्तर में मुफलिस ही निकले बस फिर क्या था । सारे शहर में घूम मच गई कि हाजी ने मिरवा से ऐसा प्रश्न किया जिसका वै कोई उत्तर ही न दे सके और हाजी ही - बहुत बड़े विधान है । उसी अवसर पर एक दिन अकबर ने काजी जादा लश्कर से कहा कि तुम रात को सभा में नही जाते । उसने निवेदन किया कि हुज़र जाऊं तो सही पर यदि वहां हाजी जी मुझ से पूछ के कि. • ईसा का सीगा क्या है तो मैं क्या जबाब दूंगा ? यह दिल्लगी बापशाह को बहुत पसन्द बाई थी । २१ तात्पर्य यह है कि इस प्रकार के विरोध फगड़े और वात्माभिमान आदि की कृपा से बहुत से सारी देखने में आये । इसी प्रकार की एक अन्य घटना बदायूंनी लिखता है कि - • • • - - - - - ...................-1 (२०) इसमें वसम्बद्धता यह है कि सीगा केवल प्रिया में होता है संज्ञा में नहीं होता, और मूसा संज्ञा है। (२१) अकबरी - दरबार - हिन्दी अनुवादक रामचन्द्र वर्मा पहला भाग पृष्ठ ० ७२-७३ For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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