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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org कब्र की धार्मिक नीति किया । अकबर ने ईसाइयों को खम्भात, लाहौर, हुगली और बागरा में! गिरजाघर निर्मित करने की अनुमति दे दी । इन स्थानों पर धीरे धीरे । राजकीय व्यय से गिरणा पर बनवाये गये । सन १LE मैं अकबर की तुमति से वागरा में गिरजा पर बनवाया गया । ७ - गैर मुसलमानों की साम्राज्य के उच्च पर्दा पर नियुक्ति • - - - - - - - - - - - - - - - - - अकबर ने इस वाधार भूत सिद्धान्त को समझ लिया था कि सभी मा वीर धर्मा का जनक ईश्वर है और इस लिये सारा मानव समाज ईश्वर के पुत्र के समान होने से जन्म से ही मनुष्य समान अधिकार रखते है हन विचारों के कारण अकबर का शासन और राजत्व का सिद्धान्त - अत्यन्त उदार, सहिष्णु और व्यापक क गया । शासन सत्ता अपने साथ में लेते ही अर्थात १५६२ के प्रारम्भिा - महीनों में ही टोडरमल, मानसिंह, गवन्त दास, बेनीचन्द्र, बीरबल जयार. कवाहा आदि को अकबर ने अपने राज्य की सेवा में उच्च पर्दा पर नियुक्त कर लिया था । राजस्व विभाग में उसने बोर्ड के टोडरक के अतिरिक्त अनेक हिन्दू कर्मचारी और अधिकारी नियुक्ति किये । इससे दोनों के मैद - माव की खाई पटने लगी । अकबर की यह नीति बहुत कुछ। बबुर पज के विचारों से भी प्रभावित हुई । उस फज लिखता है कि"राजपद ईश्वर का एक उपहार है, और यह तब तक प्रवान नहीं किया जा सकता जब तक कि एक व्यवित में हजारों महान गुणा और विशेषताओं का समन्वय न हो जाये । इस महान पद के लिये जाति, धन • सम्पत्ति तथा लोगों की भीड़ भाड़ ही काफी नहीं है। वह इस महान पद के लिये तब तक योग्य नहीं है, जब कि वह सर्वजनिक शांति और • सहिष्णुता पैदा न करें । यदि वह मानवता की सभी जातियाँ बौर की सम्प्रदायों को एक आंख से नहीं देखना, और कुछ लोगों के साथ माता का सा और कुछ के साथ विमाता का सा व्यवहार करता है, तो वह हले For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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