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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्सर की धार्मिक नीति 6 institutiod by the Khalif Omar. who fixed it in three gradee of 48, 24 and 12 dirhams respectively." 10 इसवी सन की चौदहवी और पन्द्रहवी शताब्दी में मी फिरोज शाह - तुगलक ने कानून बनाया था कि गृहस्थों के घरों में जितने बालिंग मनुष्य हो उनसे प्रति व्यक्ति धनियाँ से ४० सामान्य स्थिति वाली से २० और गरीबी से १० टांक जजिया प्रति वर्ष लिया जाय । बागे पी यानि जिस सोलम्वी शताब्दी की हम बात कहना चाहते है उसमें भी यह जज्यिा - मोजुद था । यह कर हिन्दू धर्म पर इस्लाम की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करता। था जो हिन्दुओं के लिये लज्जा जनक था । सिंहासन पर बैठते ही पहले वर्ण अकबर के मन में जजिया माफ कर देने का विवार उठा था । पर उस समय उसकी युवावस्था थी । कुछ जो लापरवाही और कुछ अधिकार के अभाव के के कारण उस समय कर समाप्त न हो सका। १५६२ में अकबर के हाथ में सर्व सत्ता आ गयी थी । अत: अकबर ने सर्वस्वीकृत इस्लामी रिवार्षा की उपेक्षा करके मुसलमान मंत्रियों और पदाधिकारियों तथा कटटर मुसलिम नेताओं व उन्माओं के कड़े विरोध के ! बावजूद १५ मार्च १५६४ को जजिया कर की समाप्ति के आदेश प्रसारित कार दिये और सम्पूर्ण साम्राज्य में जजिया कर बन्द कर दिया गया । ११ बड़े बड़े मुल्लाओं और मौलवियों को इससे बड़ी लापत्ति हुई लेकिन अकबर ने कहा कि "प्राचीन काल में इस सम्बन्ध में जो निश्चय हुवा था, उसका कारण यह था कि उन लोगों ने अपने विरोधियों की हत्या करना और उन्हें लूटना ही अधिक उपयुक्त समझा था । ---- इसी लिये उन्होने की कर बांध दिया और उसका नाम जजिया रख दिया । अब हमारे प्रजा - पालक और उदारता आदि के कारण दूसरे माँ के अनुयायी भी हमारे 10 - Smith ! Akbar the great Mogul. F. 66. 11- Akbarmama, Vol. II P.P. 203-4. For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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