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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नति सम्पन्न करता रह सकता है । मन की यह दशा केवर पांलीय ही नहीं। वरन व्यावहारिक मी है। उसका कहना था कि -" जिस प्रकार हिन्द स्त्रियां शेटे शेटे कुओं से पानी लेने जाती है और सिर पर दो दौ, । तीन तीन गगरी रखे हंसी करती हुई की जाती है किन्तु पानी की एक वद भी छलकने नहीं देती, सी प्रकार सब कार्य करते हुए मनुष्य यदि चाई तो अपने मन से ईश्वर के विचार को एक पाण के लिये भी पृथक नहीं। कर सकता ।"२८ ___ अकबर के इन विचारों से पता कता है कि वह एक विशुद्ध - 1 धार्मिक व्यक्ति था लेकिन साई पारी बारतोली का कहना है कि उसके विचार जानने का किसी में सामर्थ ही नही था वह दिखता है कि . ! " अकबर अपने आंतरिक विचारों को जानने का या वह किस धर्म या कि मत के अनुसार वर्ताव करता है सो समझने का कभी किसी को भी मौका नही देता था । उसके हरेक काम में यह सूबी थी कि वह बारी भेद और प्रपंच से दूर रहता था, और जितमी कल्पना की जा सकती है उतना - प्रामाणिक बार बेलार रहता था, मगर वास्तव में था वह बड़ा ही गहरा और स्वतंत्र । उसके बचन इस प्रकार के शब्दों में निकले थे कि, जिसके दो अर्थ हो जाते थे, कई बार तो उसके कार्य वचर्ना से इतने विरुद्ध होते थे कि बहुत खोज करने पर भी उसके गांतरिक मान जानने की कुंजी । नहीं मिलती थी ।" इससे मालूम होता है कि अकबर की स्थिति धार्मिक विषय में या तो अधिकचरी थी अव्यवस्थित थी या उसे कोई जान ही नहीं सफा था लेकिन हतमा अवश्य है कि उसके हृदय में कुछ का संस्कार की मात्रा 28 - Ain-1-Akbari- Vol. III Trans. by H.S.Jarrett.P.424 25. 29. According to Bartoli quoted from Smith & Akbar the great Mogul, P. 73. For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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