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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकब्र की धार्मिक नीति में वाकर वह अनुचित रुप से दण्ड बादि भी दे दिया करता था । परन्तु : इस प्रकार की संयम पीगता यदा कदा बोर साणिक ही होती थी। सत्य तो यह है कि अकबर एक मनुष्य था और उसमें अनेक दुर्गुण भी थे, तथापि उसके कई असाधारण गुर्गा ने उसके दुर्गुणों को ढक दिया था । अन्त में हम अकबर के व्यक्तित्व के उस महत्व पूर्ण बंश पर बाते है जो कि उसके जीवन में महत्व पूर्ण स्थान रखता है और वह है स्वर के प्रति बगाथ ऋदा । मानव और ब्रम्ह के मध्य के आध्यात्मिक तत्व । सम्वन्थि गवेषणा का विक्ष्य उसे बड़ा मोहक लगता था । वह ईश्वर में पर निष्ठा, बास्था और विश्वास रखने वाला व्यक्ति था । अबुल फजल! लिखता है कि अकबर परे जीवन भर सत्य की खोज में लगा रहा और अपने ! कर्तव्य पालन को श्वरीय उपासना का एक बंग मानता रहा । अकबर के । पुत्र जहांगीर ने अपनी बात्म कथा में लिखा है कि ." अपने साम्राज्य राज कोण, अपार गदै हुए धन, पुरानी अगणित राशि, असंस्था लड़ाकू हाथी बोर बरबी घोड़े आदि होते हुए भी वे भगवान के सामने बाल बराबर पी उपहास की का नहीं करते थे और उसको कमी नहीं भुलाते थे। वे प्रत्येक सम्प्रदाय, धर्म और जाति के सत्पुस माँ की संगति में रहा . करते थे । और उनकी बुद्धि और स्थिति के अनुसार उनका वापर करते थे । "२५ अकबर की कुछ अपोलिखित सूक्तियों से स्पष्ट हो जाता है कि सर्व शक्ति मान परमेश्वर के प्रति उसकी बगाध श्रद्धा थी । * There exists a bond between the creator and the Creature which 18 not expressible in language." २५ - जहांगीर के अनुसार • एस.वार. शर्मा व्दारा उधत - हिन्दी अनुवादक मथुरालाल शमां • भारत में मुगल साम्राज्य - पृष्ठ - २८३. For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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