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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अळबर की धार्मिक नीति . . . . . . + + के प्रति सव सम्मान रखा । माम अनगा के जनाजे के साथ वह घर तक का और जीजी बनगा के जनाजे को कन्या भी दिया । थाय बन्धु जीबी कोका के प्रति उदारता प्राट की तो सौतेले भाई मिर्जा हाकिम के विद्रोह करने पर भी उसे परास्त कर पामा कर दिया । उसका कहना था कि हामि उसके पिता की स्मृति है । अपने पुत्र - पुत्रियों के प्रति भी अकबर । बहुत अधिक सेह रखता था । सहीम का अनुचित व्यवहार भी अकबर के पित स्नेह और कृपा को थम न कर सका । अनेक बार विद्रोह करने पर पी अन्त में उसने सलीम को सामा ही कर दिया । संदीप में हम कह सकते है कि अपने परिवार के सभी सदस्यों के प्रति उसका बड़ा स्नेह और सहव्यवहार था | बच्चों को तो वह बहुत ही प्यार करता था | "Akbar said, children are the young sal pings in the garden of 116e. To love thon 18 to tum our minds to the Bointiful creator " 17. अकबर अपने पारिवारिक सदस्यों के अलावा अपने मित्रों साथियों ! और सहयोगियों के प्रति भी अत्यन्त मैत्री स्व स्नेह पूर्ण सम्बन्ध रखता था। वीरकल, टोडरमल, फैली और अबुल फजल के साथ जो उसका व्यवहार अत्यन्त मैत्री पूर्ण और सहृदयता का था । बीरबल की मृत्यु पर तो उने । दोको दिन और दो रातो तक मुछ भी खाया - पिया नहीं । उसे इस बात का अत्यन्त दुख था कि युद्ध के बाद भी उसे बीरबल का शव न प्राप्त हो सका । और हिन्दू परम्पराओं के अनुसार वह उसकी दाह किया न कर। सका । इसी प्रकार अपने अन्नन्य मित्र बबूल, फजल के देहावसान की शोक केला में वह फूट फूट कर रोया, उसे इतनी अधिक मार्मिक वेना हुई कि ! 17 - Ain-1-Akbari Vol. III Trans. by H.S.Jarrett P-431.1 For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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