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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org 15- Snd th: Akbar the great Mogul P. 338. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतीतनहीं होता था । यपि अकबर न तो पूर्ण रूप से खादार था और न विद्वान ही, परन्तु उसमै जीवन का व्यावहारिक ज्ञान अत्यधिक था । औपचारिक निरक्षरता से उसे जरा भी कठिनाई न हुई । वह कुशाग्र बुद्धि वाला सम्राट था । उसकी स्मरण शक्ति इतनी विलक्षण व अलौकिक थी, जिससे उसे पढ़ कर सुनायी गयी पुस्तकों की वर्तवस्तु, विभागीय मामलों के विवरण यहां तक कि सैकड़ों व्यक्तियों, चिड़ियाँ, घोड़ों व हाथियों के नाम स्मरण रहते थे । वह जो कुछ सुनता था या जो कुछ उसे विभिन्न ग्रन्थों से पढ़ कर सुनाया जाता था सभी उसे याद हो जाता था । Smith says, Akbar was intimately acquainted with the works of many Muhammadan historians and theologians, as well as with a considerable amount of general Asiatic literature, especially the writings of Sufi or mystic pos -ts. अत: अकबर दर्शन शास्त्र, धर्मशास्त्र वीर अध्यात्मवाद के विभिन्न गूढ़ - रहस्यों पर अच्छी तरह वार्तालाप बर वाद विवाद कर सकता था । तर्क करने में वह बड़े विद्वानों को भी परास्त कर देता था । विज्ञ समीतियों में वह जिस वाकू पटता का परिचय देता था उसे सुन कर कोई यह अनुमान मी न लगा सकता था कि वह व्यक्ति निरदार होगा । किसी भी विषय पर वह अपना मत कुशलता, स्पष्टता और सरलता से व्यक्त करता था । ज्ञान, प्रतिमा और मानसिक शक्तियों में वह श्रेष्ठ था तथा उसमें उच्च कोटि की प्रयोगात्मक वृद्धि थी । अपने उच्च आदर्शों को वह कार्य रूप में परिणत करता था और अपने आदर्शों की उपयोगिता का परिचय देता था । For Private And Personal Use Only 30 -
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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