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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति धार्मिक सदी के उत्तराये में ही इसके लिये तत्पर नहीं है तो इससे पूर्व सोही सदी मैं तो वीर भी पीछे थे। वास्तव में अकबर धार्मिक एकता बीर मन्वय लाने के अपने प्रयत्नों में सफल हुआ क्योंकि वह समय से बागे था । उस समय के हिन्दू बीर मुमान दोनों ही उसके धार्मिक विचारों को समझने में असमर्थ रहे। फिर भी अकबर ने अपनी नीति और सिद्धान्तों सेािर्मिक दृष्टिकोण, सॉन्च कटुता, असहिष्णुता, पारस्परिक आदि को समाप्त कर दिया और विभिन्न धर्मों के सिद्धान् की एकता तथा धार्मिक व सामाजिक माहवारे की भावना को प्रोत्साहित किया। कम से कम अपने शासन काल तक उसने सभी विकावयाँ की वार्मिक स्वतंत्रता देवर राज्य को की निरपेक्ष बनाये रखा । प्रथा में किसी मी धर्म अथवा मत को मानने वाला व्यक्ति वपनी इच्छानुसार अपने वार्मिक रीति-रिवाज का पालन कर सकता था । वपने धर्म की उपासना व पूजन की विधी अपना सकता था । उसमें राज्य की बोर से किसी भी प्रकार का स्तरीय नहीं किया जाता था । २. विभिन्न कविलियर्या में संतुलन रहने से साम्राज्य की सुरक्षा : For Private And Personal Use Only 127 अकबर के विशाल साम्राज्य की सुरक्षा के लिये कह वावश्यक था कि वह विभिन्न धर्माविवियों में संतुलन बनाये रखे । मध्य युग में वही प्रथम सम्राट था जिसने इस बात का स्पष्ट बनुनय कर लिया था कि उसकी प्रजा के सभी व्यक्तियों के साथ, बाहे वे किसी भी सम्प्रदाय या वर्ग के हो, उसका व्यवहार न्याय संगत, निष्पक्ष एवं समान होना चाहिये । उससे पूर्व सुलतान के शासन काल में ऐसी नीति का अभाव होने से हिन्दुब मैं बसल्योग, विशेष क्या विद्रोह की प्रवृत्ति कबती होती गयी थी । कबर ने मेद भाव और पापा की नीति को त्याग कर सुह की नीति अपनाई | हिन्दू, मुख्मान, पारसी, ईसाई, जैन, बार यहूदी बादि प्रत्येक पर उसकी दृष्टि समान थी। इतना ही नहीं उसने हर - ए
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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