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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org 15 मर की धार्मिक नीति पार्मिक नीति के परिणाम - - - - - - - - - अकबर के पूर्व दिल्ली सुल्तानों ने राजसत्ता को हरामी स्वरूप प्रदान किया तथा उसे क वत्यन्त संकीर्ण, साम्प्रदायिक और मानव स्मार्थ विरोधी ईशसत्तात्मक मान लिया था । अकबर ने इस साम्प्रदायिक शि अधीन सत्ता के स्तरों को ऊपर उठाकर सर्व माननीय ईशसत्ता के उत्तर तल पर पहुंचा दिया । उसने एक संकीर्ण साम्प्रदायिक राजसत्ता की विबार धारा को परिष्कृत तथा परिवर्तित कर दिया । बाबर ने भारत के प्रचलित अनेक माँ का शास्त्रीय विधि से निरीक्षण किया था जिसके फल स्वरूप वह इस निकर्ष पर पहुंचा कि प्रत्येक में में सत्य विमान है और यह कहना गलत है कि सत्य केवल इस्लाम धर्म तक ही सीमित है जो कि इसरे कों की अपेक्षा नया है । अत: उसने एक ाम की को राज्य धर्म 1 से पृथक करके पीन लाती नामक नया धर्म को उस स्थान पर स्थापित - 1 किया । यह नवीन धर्म र सार पूर्ण विश्वास था तथा उसमें प्रत्येक में मैं से लिये हुए उत्तम नियम संयुक्त थे । दीनालाही की स्थापना के बाद भी अकलर ने उपनी प्रजा को व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता देने की नीति का अनुसरण क्यिा क्योंकि वादशाह को यह पूर्ण विश्वास था कि प्रत्येक धम में सत्यांश है, उनमें श्विर भी है चाहे उसकी उपासना मंदिर, मसजिद अथवा गिरजा घर में की जाये । उसका कहना था कि प्रत्येक धर्म को समान समझना चालिये, प्रत्येक मानुयायी को अपने घर में विश्वास करने और पालन करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी नाहिये । इस्लाम धर्म को उच्च स्थान से उतार कर दूसरे में के बराबर रखने के लिये ही उसने यह सब किया । उसकी इस थामिक नीति के परिणाम भिन्नलिखित हुए - For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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