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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org ------ खुतबा व मजहर हबादबाने में मुस्लिम उत्पादों के वाद विवाद से और ईर्ष्या द्वेग तथा आरोप प्रत्यारोप से अकबर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सत्य का इन धार्मिक फगड़ों से कोई सम्बन्ध नहीं है । इस लिये उसने एक और तो इबादत खाने के व्दार हिन्दू, जैन, पारसी व ईसाई सन्तों के लिये खोले तो दूसरी ओर अपने आपको कटटर धर्मांध मुल्लाओं के हानि कारक प्रभाव से स्वतंत्र करने का निश्चय किया । इस हेतु उसने दो दृढ कदम उठाये एक तो इतना पढ़ना और दूसरा बभ्रान्त आज्ञा पत्र अथवा महजर प्रसारित करना । खुतबा पढ़ना : उसकी शान बढ़े - बल्ल T प्रभाव मुख्य मानके पद को ग्रहण करने के लिये तथा उल्मागौ और महत्व को कम करने के लिये शुक्रवार, २२ जून १५७६ को फतेहपुर सीकरी की प्रमुख मसजिद की वेदी पर चढ़कर अकबर ने कवि फैजी बारा कविता में रचित निम्न लिखित बुतबा पड़ा : उस अल्लाह के नाम पर जिसने हमें साम्राज्य प्रदान किया है, जिसने हमें विवेकशील मस्तिष्क तथा शक्तिशाली जाएं दी है, जिसने हमें धर्म और न्याय की ओर प्रेरित किया है, जिसने हमारे हृदय से घी और बुद्धि के अतिरिक्त सब कुछ निकाल दिया है, जिसके गुण मानवी समझ से परे है, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - .. 93 हु- अकबर । २१ अल्ला अकबर ने खुतबे के अन्त में जो अकबर शब्द पढ़े उसके दो अर्थ निकलते है । एक तो यह कि अल्लाह सब से बड़ा है और दूसरा For Private And Personal Use Only 21 AL-Badaoni. Trans. by W.H. Love Vol. II F. 277.
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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