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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति 91 में ईसाई धर्म के विषय में सुनने का एक कौतुल्ल था, श्रद्धा नहीं । अत: । निराश होकर फले के समान इसरा शिष्ट मण्डल भी वापिस लौट गया ।। गोवा से तृतीय सुष्ट मिशन : सन १६६५ में अकबर ने तीसरी बार गोवा के पुर्तगाली वायसराय को विद्वान ईसाइयों का एक शिष्ट मण्डल पेजने के लिये एक बामिनिया ईसाई को पत्र देकर मजा । स्स० बार० मा लिखते है कि इस काम के लिये सेण्ट फ्रांसीस जेवियर के माई का पोता पादरी रोम जेवियट - पापरी हमेनुक पिनरो और ब्रदर बेनेडिक्ट डी गोज को चुना गया । ये तीनों ही अपने अपने पत्र में बड़े योग्य थे ।“ १६ यह मिशन ५ मई १५६५ मैं लाहौर पहुचां । ये लाहार और उसके आस पास के पौत्र में ईसाई धर्म का प्रचार करते थे तथा हिन्दुओं और मुसलमानों को ईसाई बनाते थे । स्स. बार. शर्मा के अनुसार - जब अकबर मई में कासीर गया तो वह अपने साथ पारी जेवियट वोर अगर गोत्र को पी ले गया । ये लोग वहां नवम्बर सन १५६७ तक ठहरे । जब ये लोग वहीं थे तो काश्मीर की घाटी में एक बड़ा इमिपा पड़ा और पदरी ने बहुत से अनाथ बच्चों को, पिन्, गलियों में मरने के लिये छोड़ दिया गया था, ईसाई में दीपित किया । “२० ईसाई धर्म का अकबर पर प्रभाव : अकबर सभी धर्मों के प्राचार्यो, सन्ता, विद्वानों और नेताओं के प्रति उत्यन्त उदार व सहिष्णु था । ईसाइयों के शिष्ट मण्डलों के प्रति भी वह शिष्ट, विनय शील, उदार वीर सहिष्णु था । ईसाई धर्म के सिद्धान्तों से पूर्ण परिचय प्राप्त करने का उत्कृष्ट अभिलाणी होने के • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • 19. एस. बार. मा - हिन्दी अनुवाद मथुरालाल शर्मा (भारत मैमुगल 20 - " " " " सामाज्य)प० २३६ ७ For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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