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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति । उसमें बराबर अग्नि जलती रहती थी । उसे आज्ञा दी गई थी कि उसमें की अग्नि कमी बुकने न पावे, क्योंकि यह ईश्वर की सब से बड़ी देन और उसके प्रकाश में से एक मुख्य प्रकाश है । ६ पारसियों के समान अकबर अग्नि में चन्दन डाल कर उसके सामने प्रार्थना भी करता था । और उसके प्रति बड़ी श्रद्धा रखता था । मुहम्मद हुसैन लिखते है कि सन् २२ जलसी अकबर ने निस्संकोच भाव से अग्नि को प्रणाम किया । ७अग्नि पंथ या पारसी धर्म में अकबर की निष्ठा एक घटना से स्पष्ट हो जाती है । यह घटना सन १६०३ में घटित हुई अकबर मध्यान्ह के बाद अपने शयथ कक्षा में विश्राम करने का अभ्यस्त था एक सन्ध्या को वह अपने शयन कक्षा में विश्राम करने का समय से आशा से पूर्व ही बाहर निकल आया । पहले उसे वहां कोई नौकर दिखाई नहीं दिया । पर जब वह सिंहासन और कोच के समीप आया तब उसने शासकीय मशालबी को कुंडली मारे शाही कुर्सी के समीप मौत की सी नींद सोये हुए देखा । इस दृश्य से क्रोधित होकर अकबर ने उसे मीनार से नीचे फेंक देने की आज्ञा दी । इससे उसके कई टुकड़े होकर उसका प्राणांत हो गया । सन् १५८० से उसने सूर्य के सामने साष्टांग दण्डवत करना प्रारम्भ कर दिया था । पारसी की एक अन्य प्रथा के अनुसार जब शाम को दीपक जलाये जाते थे तो अकबर स्वयम् और उसके दरबारी प्रकाश के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिये खड़े हो जाते थे क्योंकि अकबर का कहना था कि "To light a Candle is to Commemorate the rising of the) Sun, To whomsoever the Sun sets, what other remedy hath he bat this 9 Ε Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - For Private And Personal Use Only Al-Badaoni Trans. by W. H. Love Vol. II. FP 268-69 ७ अकबरी दरबार पहला भाग हिन्दी अनुवादक रामचन्द्र वर्मा पृ० १२६ Smith: Akbar the great mogul. P. 164. Ain-i-Akbari Trans, by H.S. Jorrett. Vol. III 443. · 31
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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