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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsan Gyanmandir आकाशगामिनी विद्याकल्प २४, ६, १०५, २०२ एकत्रीकृत्य सेरमानं जले उत्काल्य पादैकमुत्तार्य स्त्रीणां पाय्यते कषायादिभोजनं वयं सप्तटंकप्रमाणं प्रतिदिनं देयं सप्तदिनं गतपुष्पमायाति २४ गाजरवीज ६ मिरच काली १०५ कालातिल २०२ सढी सेर पानीमे उकालकर क्वाथबनाकर पाव पानी रहे| उतारकर वनिताको पिलावे खट्टाकषायादि भोजन न करे २।। दवा उकाले रोज लेवे सात दिनमे गतपुष्प पीछा आवे १५४, ६, १९०, २२८, १९८, १३ समभागं एकीकृत्य पश्चात्तावन्मात्रं गुग्गुलं मेलयित्वा लघुवदरिकाफल प्रमाणं गुटिकां कृत्वा उष्णोदकेन सह भक्षने अलर्क कुक्कुरस्य शृगालस्यवा विषयाति १५४ मालबीवावची ६ मिरच १९० हिगलुशुद्ध २२८ अजमोद १७८ नेपालाशुद्ध १३ सोहागा समभाग सब | एकत्र करके उतनाहि गुग्गुल मिलाकर छोटी बोरकेसमान गोलीकरे गरम पानीसे गोली लेवे पागल कुत्ता सियालाक विष जावे || १७७, १८, १७९, ३४, १७०, ८४, १२१ एतेषांमूलानि पुष्पार्के निमंत्रणं पूर्वकं गृहित्वाहस्ते शिरसिवा धार्यते लाभोभवति १७७ अंकोल १८ मयूरशिखा १७९ झेझरो ३४ श्वेतसरपुंखा १७० गली ८४ रामलखमना १२१ श्वेतगिरणी सबको पुष्पार्कके पहलेदिन निमंत्रण देकर पुष्पार्कमे लेवे हाथ माथेमें धारण करे लाभ होताहै For Private And Personal use only
SR No.020022
Book TitleAkashgamini Padlepvidhi kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddh Nagarjun
PublisherJain Prachin Sahityoddhar Granthawali
Publication Year1941
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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