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________________ San Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsan Gyanmandir ६ | आकाश गामिनी विद्याकल्प |१५।१६।२।४।६।२०।३१।४२।५३६४।१८।७ समभागं अजादुग्धनसह गुटीकांकृत्वा नेत्राञ्जनं कार्य तिमिरं पडवालं नीलबिन्दु, खर्जकादिप्रमुखारोगाः प्रणश्यन्ति १५ धूआसो १६ उपलोट २ सुंठ४पिपल ६ मिरच २० मिसरी ३१ समुद्रफेन ४२ सुरमा ५३ सोवनमाखी ६४ वायविडंग १८ मयूरशिखा ७ लज्जालु (१८,७ के स्थानपर १८७ है उसका अर्थ कतक फल है) इनसब दवाको बकरीके | दुधके साथ गोलीकरके आंखमे अंजन करे तो तिमिर पडवाल खाज आदि सब चक्षुके रोग नष्ट होजाते है. २७॥८९२, ९६, चूर्णीकृत्य दीयते रक्तपित्तो याति ||९९ सेवाल ९६ वीलगिर इसका चूर्ण कर देवे रक्तपित्त जावे २८||९, ५२, गुडेनसह दीयते वध्यायाः पुत्रोभवति पारा ५२ उभयलिंगी गुडकेसाथ देवे वंध्याभी पुत्रवती होती है २९/ १, १२, ११, ४, मधुनासह तिलकं दुष्टमुखवंधोभवति १ श्वेतार्क मूल १२ श्वेतकनेरमूल ११ पतंजारी ४ पिपल सबसमभाग मधुकेसाथ तिलक करे शत्रुका मुखवंद होवे राजदरबारमें जय होवे. For Private And Personal use only
SR No.020022
Book TitleAkashgamini Padlepvidhi kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddh Nagarjun
PublisherJain Prachin Sahityoddhar Granthawali
Publication Year1941
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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