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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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दहेज में दिये गये । इन सब के साथ नवविवाहित नागकन्या को साथ लेकर राजा अग्रसेन अपनी राजधानी को वापस आया ।
ये सब समाचार इन्द्र ने नारद के मुख से सुने । राजा अग्रसेन के उत्कर्ष को सुनकर इन्द्र बहुत घबड़ाया । उसने संधि का प्रस्ताव लेकर नारद को अग्रसेन के दरबार में भेजा । नारद को देखकर अग्रसेन बहुत प्रसन्न हुवा और उसका बड़ी धूमधाम के साथ स्वागत किया । राजा अग्रसेन ने यही प्रतिज्ञा की कि जो कुछ नारद कहेगा, वही करूँगा । इस पर नारद को बहुत संतोष हुवा और उसने वैश्यों के राजा से इस प्रकार निवेदन किया “इन्द्र के साथ मित्रता करलो, इस व्यर्थ के द्रोह से क्या लाभ ?”
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ऐसा कह कर नारद अन्तर्धान हो गए और स्वर्ग लोक में इन्द्र के पास पहुँचे । इस तरह नारद मुनि के प्रयत्न से राजा अग्रसेन और इन्द्र में सन्धि हुई । पर राजा अग्रसेन अभी पूर्णतया संतुष्ट न थे । वे एक बार फिर यमुना तट पर गए और अपनी नवविवाहिता वधू नागकन्या के साथ तपश्चर्या का प्रारम्भ किया । कुछ समय की घोर तपस्या के पश्चात् देवी महालक्ष्मी प्रसन्न हुई । प्रकट होकर उन्होंने अपने भक्त को निम्नलिखित शब्दों में सम्बोधन किया
“हे राजा, इन तपस्याओं को बन्द करो, तुम गृहस्थ हो । गृहस्थाश्रम सब श्राश्रमों में मुख्य है । सब वर्गों और आश्रमों के लोग गृहस्थ में ही आश्रय लेते हैं । इसलिये यह उचित नहीं, कि तुम इस प्रकार तपश्चरण करो। जैसा मैं कहती हूं, वैसा ही करो। मेरी आज्ञा का पालन करो, इससे तुम्हें सब सुख वैभव प्राप्त होगा, तुम्हारे वंश के लोग सदा सुखी
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