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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गण का संस्थापक राजा अग्रसेन अनल, नन्द, कुन्द, कुमुद वल्लभ, और शुक। इनके अतिरिक्त उसकी मुकुटा नाम की एक लड़की भी थी। उसी समय विशाल नाम का एक और राजा था, जिसकी आठ कन्यायें थीं । उनके नाम निम्नलिखित हैं – पद्मावती, मालती, सुभगा, कान्ती, श्री, श्रुवा, वसुन्धरा और रजा । इन आठ कन्याओं का विवाह धनपाल के आठ लड़कों के साथ हुआ । इनमें से नल तो संन्यासी हो गया । बाकी सातों सात पृथक् पृथक् राज्यों के स्वामी हुवे । शिव के वंश में क्रमशः विष्णुराज, सुदर्शन, धुरन्धर, समाधि, मोहनदास और नेमिनाथ हुवे । इस नेमिनाथ ने नेपाल बसाया और अपने नाम पर उसका नाम नेपाल रक्खा । उसका लड़का वृन्द हुवा । इसने वृन्दावन में एक बड़ा भारी यज्ञ किया। इसी के नाम से उस जगह का नाम वृन्दावन पड़ा । वृन्द का लड़का राजा गुर्जर हुवा | उसने गुजरात पर कब्ज़ा किया। उसका उत्तराधिकारी राजा हरिहर था । हरिहर के सौ पुत्र थे । इनमें से एक रंगजी राजा बना, बाकी सब अधर्म का अनुसरण करने से शूद्र हो गए। रंग जी के बाद पांचवी पीढ़ी में राजा अग्रसेन उत्पन्न हुवें । उन दिनों नागलोक का राजा - कुमुद था । उसकी एक कन्या माधवी नाम की थी, जो बड़ी रूपवती थी । इन्दु उससे विवाह करना चाहता था, पर राजा कुमुद की इच्छा थी, कि माधवी का विवाह राजा अग्रसेन के साथ हो । माधवी के साथ विवाह के अनन्तर राजा अग्रसेन ने बहुत से यज्ञ बनारस और हरिद्वार में किये। उन दिनों कोलपुर के राजा महीधर की कन्या का स्वयंवर था । अग्रसेन वहां भी गया और महीधर की कन्या को स्वयंवर में प्राप्त किया । अन्त में वह दिल्ली के समीपवर्ती प्रदेश में बस गया, और For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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