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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्रवाल जाति की उत्पत्ति जाते रहते थे। राज्य का संचालन प्रायः जनता के हाथ में होता था। पुर के निवासी पौर सभा में और जनपद के निवासी जानपद सभा में एकत्रित होकर राज्य की बातों पर विचार करते थे तथा अपने निर्णय करते थे । इन सभाओं में विविध कुलों व परिवारों के मुखिया सम्मिलित होते थे। चाहे राज्य ( गण राज्य ) का कोई वंश-क्रम से चला आया राजा हो या लोग अपना मुख्य ( मुखिया) स्वयं चुनते हों, राज्य का संचालन प्रायः जनता के ही हाथ में रहता था । ___इन गण राज्यों की जनता प्रायः एक जाति, वंश या जन (Tribe) की होती थी। सब एक दूसरे को बन्धु या एक बिरादरी का समझते थे । प्राचीन भारत में ऐसे राज्य सैंकड़ों की संख्या में थे। यदि हम महाभारत को पढ़ें, तो ऐसे सैंकड़ों राज्यों के नाम हमें मिलेंगे। प्राचीन भारतीय साहित्य के अन्य ग्रन्थों, पुराणों, शिलालेखों आदि में भी इस तरह के छोटे छोटे राज्यों के बहुत से नाम हमें मिलते हैं । सदियों तक ये राज्य स्वतन्त्र रहे। आपस में इनकी लड़ाइयां जरूर होती थीं, पर कोई राज्य दूसरों को सर्वथा नष्ट न करता था। शक्तिशाली राजा दूसरों पर आक्रमण कर उनसे आधीनता स्वीकार करा लेते थे, और उन्हें भेट, उपहार देने के लिये बाधित करते थे। रामायण और महाभारत काल के साम्राज्यों का यही मतलब होता था । पर आगे चल कर भारत के इतिहास में ऐसे शक्तिशाली राजा हुवे, जो दूसरों से केवल प्राधीनता स्वीकार कराने से ही सन्तुष्ट न होते थे। इनका उद्देश्य दूसरों को नष्ट कर स्वयं चक्रवर्ती सम्राट या 'एकराज' बनना था। मगध के राजा इसी कोटि के थे। मैसिडोन का शक्तिशाली For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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