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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्रवाल जाति की उत्पत्ति महाभारत के इस प्रकरण में राजा कर्ण के दिग्विजय का वर्णन I 1 है | उसने हस्तिनापुर से दिग्विजय का प्रारम्भ किया, और पश्चिमकी र विजय यात्रा करते हुवे विविध राज्यों को विजय किया । उन राज्यों में से अनेक गण राज्य थे । गणों का क्या अभिप्राय है, यह हम अभी आगे चलकर स्पष्ट करेंगे । राजा कर्ण द्वारा विजय किये गये गण राज्यों में से अन्यतम गण भी था, जो रोहितक और मालव गणों के बीच में स्थित था । हमें मालूम है, कि प्राचीन भारतीय इतिहास में मालव गरण बहुत प्रसिद्ध था । सिकन्दर के यूनानी ऐतिहासिकों ने भी इसका उल्लेख किया है, ' संस्कृत साहित्य में अन्यत्र भी अनेक स्थानों पर इसका जिक्र आता है । यह मध्य पंजाब में स्थित था। रोहितक गण का वर्तमान प्रतिनिधि स्पष्ट रूप से रोहतक है । हस्तिनापुर से पश्चिम की तरफ विजय यात्रा करते हुवे कर्ण ने पहले रोहतक को जीता, फिर आग्रेय को और फिर मालव को । स्पष्ट है, कि श्राग्रेय रोहतक और मालव में भी आग्नेय पाठ दिया गया है। यही कारण है कि Sorenson ने अपनी Index to Mahabharata में भी आग्नेय शब्द दिया है, आग्रेय नहीं । पर निर्णय सागर बम्बई की महाभारत में तथा पुराने छपे अन्य अनेक संस्करणों में ‘आग्रेय' पाठ है । Monier Williams ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Sanskiit English Dictionary में यही पाठ है । यही पाठ शुद्ध है । आग्नेय की इस जगह कोई संगति नहीं लगती । 1. Me Crindle, Invasion of India by Alexander the great, p. 137. For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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