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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७ अग्रवाल इतिहास की सामग्री अविकल रूप से परिचय इसी पुस्तक से मिलता है । अग्रसेन के अठारह यज्ञों के सम्बन्ध में भी इसमें महत्वपूर्ण बातें लिखी हैं । पुस्तक की भाषा से कहीं-कहीं ऐसा सन्देह होने लगता है, कि यह बहुत प्राचीन नहीं है । पर राजा अग्रसेन के पूर्वजों के सम्बन्ध में जो बातें इसमें लिखी हैं, वे अवश्य ही प्राचीन ऐतिहासिक अनुश्रुति पर आश्रित प्रतीत होती हैं । पुराणों के वैशालक वंश के साथ अग्रसेन का सम्बन्ध जोड़ना, और वैश्य 'प्रवर' भलन्दन, वात्सप्री और मांकील के साथ इन वंशों का सम्बन्ध बताना—ऐसी बातें हैं, जो इसकी प्राचीनता को सूचित करती हैं। ___ भारत के प्राचीन संस्कृत साहित्य में अनुश्रुति द्वारा बहुत-सी ऐतिहासिक सचाइयां संगृहीत हैं, उन्हें वर्णन करने वाले अनेक फुटकर ग्रंथ मिलते हैं । उरु चरितम् और अग्रवैश्य वंशानुकीर्तनम्-दोनों ही ग्रंथ इस ढंग के हैं । स्वयं बहुत प्राचीन न होते हुये भी इनमें जो अनुश्रुति है, वह अवश्य पुरानी है। इसी दृष्टि से अग्रवाल-इतिहास के पुनः निर्माण में इनका बड़ा उपयोग है। (३) भाटों के गीत–अग्रवाल लोगों में भाटों की संस्था अब तक भी विद्यमान है । प्रायः प्रत्येक अग्रवाल परिवार का अपना वंशक्रमानुगत भाट होता है, जो पुराने समय के सूतों का अनुसरण करता हुआ 'वंशों का धारण करता है । भाट परिवार के मुख्य पुरुषों का नाम स्मरण करता है, और जो भी महत्व की घटनायें हुई हों, उन्हें सुनाता है । पुराने समय में भारत में सूत लोग होते थे, जो यही कार्य करते थे । विविध राजवंशों, ऋषियों और अन्य बड़े कुलों के अपने अपने सूत होते For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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