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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५१ मध्यकाल में अग्रवाल जाति और कपड़े क्रय करते थे । नबाब के दरवार में भी अमीचन्द का मान था, और अंग्रेजों को इन्हीं के द्वारा नवाब से लिखापढ़ी करने में विशेष सुबिधा होती थी । यह काल बंगाल के इतिहास में उथल पुथल, क्रान्ति और राजपरिवर्तन का काल था । सब ओर अशान्ति मची हुई थी । षड्यन्त्र, हत्या, कपट, विश्वासघात आदि के दृश्य उन दिनों बिलकुल मामूली बात थी । लाला अमीचन्द भी इस चक्र से न बच सके । अंग्रेजों के साथ उनका सम्बन्ध सदा मैत्री और सद्भावना का नहीं रहा । यद्यपि अंग्रेजों के साथ उनका बाहरी मेल था, पर भीतर ही भीतर उनमें परस्पर चिढ़ तथा विरोध का भाव बढ़ रहा था । बंगाल के नये नबाब सिराजुद्दौला का अंग्रेजों से विरोध था । उसने किन कारणों से अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की ठानी और कलकत्ता पर आक्रमण किया, इस पर यहां विचार करने की आवश्यकता नहीं । पर अंग्रेजों ने समझा, कि लाला अमीचन्द सिराजुद्दौला से मिले हुवे हैं, और उसके आक्रमण में उनका भी हाथ है । अंग्रेजों ने अमीचन्द को गिरफ्तार कर लिया और उसके मकान पर आक्रमण किया । अमीचन्द के पास अपनी बहुत सी अङ्गरक्षक सेना थी, उसने अंग्रेजों का बड़ी वीरता के साथ मुकाबला किया । इस सेना का मुखिया जगन्नाथसिंह था । जब उसने देखा कि अमीचन्द के सैनिक सब एक एक करके मारे जा रहे हैं, और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सिपाही अन्तःपुर में प्रविष्ट हुवा चाहते हैं, तो उसका रक्त खौल उठा । 'उसके स्वामी के पवित्र कुल की कुल बधुओं पर परपुरुष की छाया पड़े और उनके निष्कलंक शरीर यवनों के स्पर्श से कलंकित , For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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