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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८९ www.kobatirth.org उरु चरितम् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिमालयं गतस्तत्र तपस्तप्त निजेच्छया सप्तभिः भ्रातृभिः पश्चात् अधिकारः कृतः स्वयम् सप्तद्वीपेषु वै तावत् स्वामिनो ह्यभवन् तदा ॥१६ जम्बुद्वीपे च स्वामिवं शिवस्य प्रोच्यते बुधैः .. कुलं तस्यैव श्रेष्ठस्य विस्तारं प्राप्नुयात् सदा 1120 शिवस्य पुत्राश्चत्वारः आनन्दः प्रथमः स्मृतः । स्वेच्छयैव च शेत्रैस्तु योगस्य कृतम् ॥२१ ॥१८ श्रानन्दादयो जात; ततो विश्यः समाभवत् । ततो वैश्य समाजज्ञे ( १ ) धर्मनीतिश्च शाश्वतम् ॥२२ प्रसुतोऽभूच्च वैश्यानां कुलं तावदशंसयम् । इनमें से नल उत्कृष्ट ज्ञान के कारण सन्यासी हो गया । वह हिमालय चला गया और वहां अपनी इच्छा से तप करने लगा । १८ 1 शेष सात भाइयों ने सातों द्वीपों पर स्वयं अधिकार कर लिया । वे सात द्वीपों के स्वामी हुवे । जम्बू द्वीप में शिव का स्वामित्व कहा जाता है । उसी श्रेष्ठ राजा का कुल वहां विस्तार को प्राप्त हुवा । १६-२० शिव के चार पुत्र थे, उनमें आनन्द सब से बड़ा था। बाकी तीन ने अपनी इच्छा से योग मार्ग ग्रहण किया । २१ आनन्द का पुत्र अय हुवा, उससे विश्य पैदा हुवा । वह सदा धर्म की नीति का पालन करता था । बिना किसी सन्देह के, वैश्यों का कुल उससे बहुत विस्तृत हुवा । २२-२३ For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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