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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महालक्ष्मी व्रत कथा धम्प्रखरौ मल्लीनाथो नन्दो कुन्दः कुलुम्बकः ॥ १४४ कान्तिः शान्तिः क्षमाशाली पय्यमाली विलासदः कुमारौ द्वौ पुत्रीश्च शृणु सौनक वक्ष्मि ते ॥ १४५ दया शान्तिः कला कान्तिः तितिक्षा चाधरामला शिखा मही रमा रामा यामिनी जलदा शिवा ॥ १४६ अमृता श्रर्जिका पुण्याष्टादश सुताः शुभाः त्रीन् त्रीन् पुत्रान् सुतैकैका सर्वास्त्वग्रसमुद्भवाः ॥ १४७ तेषु तेषु त्रयः पुत्राः पौत्रा: तावच्च पौतृका: तैस्सार्धे स भुजे राज्यं कलौ चाष्टाधिकं शतम् ॥ १४८ कान्ति, शान्ति, क्षमाशाली, पय्यमाली, और विलासद तथा अन्य दो कुमार । १४२,१४५ हे सौनक ! अब मैं पुत्रियों को कहता हूँ, वह भी सुनो- दया, शान्ति, कला, कान्ती, तितिक्षा, अधरा, अमला, शिखा, मही, रमा, रामा, यामिनी, जलदा, शिवा, अमृता, और अजिंका - ये पुण्यरूप शुभ अठारह कन्यायें थीं । १४६,१४७ -- प्रत्येक रानी के तीन तीन पुत्र और एक एक कन्या हुई, ये सब अ की ही सन्तान थे । इन सब से तीन तीन पुत्र, पौत्र तथा प्रपौत्र हुवे । उन सब के साथ ( राजा अग्र ने ) कलि के १०८ वर्ष बीतने तक राज्य का उपभोग किया । १४७-१४८ For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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