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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास मुजा प्रसादं तव वसेत् नान्यस्मै प्रतिदापयत् ( १ ) येन सा सफला सिद्धिर्भूयात् तव युगे युगे ॥ १२८ मम पूजा कुले यस्य सोऽयवंशो भविष्यति इत्युक्त्वान्तर्दधे लक्ष्मी समुद्दिश्य महावरम् || १२६ अग्रसेन ने नगर की स्थापना की हरिद्वारात् पश्चिमायां दिशि क्रोश चतुर्दशे गंगायमुनयोर्मध्ये पुण्य पुण्यतिरे शुभे चक्रे चाग्रानगर यत्र शक्रो वशं गतः ॥ १३० द्वादश योजन विस्तीर्णम् आयतं शुभम् द्वापरस्यति कालेषु कलावादि गते सति । १३१ करोद्वंशविस्तारं ज्ञातीन् संवर्धयन् ततः १७० तेरी भुजाओं में सदा प्रसाद रहे । इससे युग-युग में तेरी सब सिद्धि सफल होवे । जिस कुल में सदा मेरी पूजा होती हैं, ऐसा वह अग्रवंश है । १२८-१२९ ऐसा कहकर, यह महान् वर देकर लक्ष्मी अन्तर्धान हो गई । महालक्ष्मी के प्रसाद से कभी आयु की हानि नहीं होने पाती । १२९ हरिद्वार से पश्चिम की ओर चौदह कोस की दूरी पर, गङ्गा यमुना के बीच में अत्यन्त पुण्य स्थान पर, उस जगह पर जहां कि शक्र को में किया था, ( राजा ने ) अग्रानगर की स्थापना की । १३० यह नगर द्वादश योजन विस्तीर्ण और बड़ा शुभ है । उस समय द्वापर का अन्त हो चुका था और कलि का प्रारम्भ हो गया था । वहां For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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