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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५५ अगरोहा का पतन और अन्त दिल्ली तथा उस के आसपास के प्रदेशों में बसने लगे। धीरे धीरे वे और प्रदेशों में भी जाने लगे और इस प्रकार प्रायः सर्वत्र उत्तरीय भारत में फैल गए। ___ पर यह नहीं समझना चाहिए, कि शाहबुद्दीन गौरी के आक्रमण से पूर्व अग्रवाल लोग अगरोहा से बाहर जाकर नहीं बसे थे। तोमारों से परास्त होजाने के बाद व उस से पहले से ही उन्होंने अन्यत्र बसना शुरू कर दिया था। बिजनौर जिले के मंडावर कस्बे की स्थानीय किम्वदन्ती के अनुसार सन् ग्यारह सौ चौतीस में अग्रवालों ने उस कस्बे को फिर से बसाया था। वहां पर जिस पुराने किले के खण्डहर मिलते हैं, वह इन्हीं अग्रवालों ने बनाया था। मंडावर एक बहुत पुरानी बस्ती है । युआन चुआङ्ग ( सम्राट हर्षवर्धन के समय का प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्यूनत्सांग) ने भी इस शहर का उल्लेख किया है । ' ऐसा प्रतीत होता है, कि बाद में यह नगर उजड़ गया था और अग्रवालों ने उसे फिर से बसाया था। अब भी मण्डावर की आबादी में अग्रवालों का मुख्य स्थान है। इसी तरह मेरठ, अलीगढ़, बनारस आदि के कई पुराने अग्रवाल खान्दानों के पास अपने पूर्वजों की वंशावलियां सुरक्षित हैं। ऐसी कुछ वंशावलियां एक हजार बरस से भी कुछ पहले तक चली जाती हैं । इन का प्रारम्भ सम्भवतः उस समय से हुवा, जब कि इनके किसी पूर्वज ने अगरोहा छोड़ कर नई जगह अपना घर बसाया था। ऐसी वंशावलियों का संग्रह बड़ा उपयोगी सिद्ध हो सकता है । 1. Watters. T. On Yuan Chwang. Vol. I. p.322. For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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