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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२९ वालों के गोत्र है । हमारे विचार में गोत्रों को इस प्रकार शुद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है । सौभाग्यवश, हमारे संस्कृत ग्रन्थ 'अग्रवैश्य वंशानुकीर्त - नम्' में पूरे अठारह गोत्रों की सूचि दी गई है, जो निम्न लिखित है 1 १. गर्ग २. गोइल ३. गावाल ४. वात्सिल ५. कासिल ६. सिंहल ७. मंगल ८. मंदल ९. तिंगल १०. ऐरण ११. धैरण १२. टिंगल १३. तित्तल १४. मित्तल १६. तायल १७. गोभिल १८. गवन । से जगह इस सूचि में जो नाम हैं, वे आजकल अग्रवालों में प्रचलित गोत्रों बहुत मिलते हैं । कहीं कहीं भेद अवश्य है । यथा, वात्सिल की बंसल, कासिल की जगह कंसल, मंदल की जगह भद्दल बोला जाता हैं । पर इसमें ऐसा भेद नहीं है, कि कांसल को कौशिल और मंगल को माडव्य बना दिया गया हो। हमारी सम्मति में इसी सूचि को प्रामाणिक रूप से स्वीकृत किया जाना उचित है । अग्रवालों में गोत्र का बड़ा महत्व है । विवाह संबन्ध निश्चित करते हुवे अग्रवाल लोग केवल पिता का गोत्र ही नहीं बचाते, अपितु मामा का भी गोत्र बचाते हैं । सगोत्रों में विवाह की कल्पना भी अग्रवालों में असम्भव है । इसलिये प्रत्येक परिवार अपने गोत्र को स्मरण रखता है, और एक गोत्र के स्त्री पुरुष आपस में बहन भाई के सदृश समझे जाते हैं । गोत्र की समस्या बड़ी जटिल है। जहां तक ब्राह्मणों के गोत्रों का सम्बन्ध है, वहां उनमें बहुत विवाद नहीं । पर ब्राह्मण-भिन्न क्षत्रिय, वैश्य आदि जातियों में गोत्र की समस्या बड़ी कठिन तथा विवादास्पद For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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