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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजा अग्रसेन का वंश पुराणों में बहुत सी वंशावलियां दी गई हैं। पर उनमें केवल वैशालक-वंश ही ऐसा है, जिसके कुछ राजा निश्चित रूप से वैश्य लिखे गये हैं । यह बात बड़े महत्व की है, कि अग्रसेन का वंश इसी वंशावली की एक शाखा है। उसका प्रादुर्भाव वैश्यों के प्रवर भलन्दन, वात्सपि और मांकील से हुआ है। मार्कण्डेय में कथा दी गई है, कि वैश्य कुमारी से विवाह करने के कारण नाभाग स्वयं वैश्य हो गया। उसका लड़का भन-दन ( भलन्दन ) भी वैश्य था, पर वह आगे चल कर क्षत्रिय हो गया । वह क्षत्रिय किस प्रकार बना और वस्तुतः वह वैश्य न होकर क्षत्रिय ही था, इसकी व्याख्या बड़े विस्तार से मार्कण्डेय ने की हैं। हमारी सम्मति में इस सब व्याख्या की कोई आवश्यकता न थी। सम्भवतः मार्कण्डेय पुराण के लेखक को यह समझ न आता था कि वैश्य भनन्दन इतना शक्तिशाली राजा कैसे हो सकता है ! मार्कण्डेय पुराण की इस व्याख्या के बावजूद भी अन्य अनेक पुराण भनन्दन को वैश्य ही लिखते हैं, और उसकी संतति आज भी वैश्य ही कहाती है। धनपाल के वंशजों में अन्य राजाओं के सम्बन्ध में कोई बात निश्चित रूप से नहीं कही जा सकती। यद्यपि हमारे दोनों संस्कृत ग्रन्थ इनका वर्णन एक सा ही करते हैं, तथापि यह वंशावली पौराणिक साहित्य में अन्यत्र कहीं नहीं मिलती । रामायण, महाभारत आदि अन्य ऐतिहासिक ग्रन्थों में भी इसका कहीं पता नहीं चलता। संभवतः, पौराणिक साहित्य के संकलनकर्ता एक ऐसे वंश का वर्णन करना अपनी प्रतिष्ठा से नीचे की बात समझते थे, जो न ब्राह्मण ऋषियों का हो, और न क्षत्रिय राजाओं का हो। पौराणिक साहित्य में प्राचीन भारत के वार्ताशस्त्रोपजीवि गणों का For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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