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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सौ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास १०४ पुत्र थे । सब से बड़े पुत्र का नाम रङ्ग था । हरि शरीर में बहुत निर्बल था, इसलिये अपने बड़े लड़के रङ्ग को राज्य देकर वह स्वयं हिमालय में तपस्या करने चला गया। बाकी निन्यानवें लड़के इससे बहुत नाराज हुए, उन्होंने प्रजा को सताना शुरू किया । राज्य से शान्ति नष्ट हो गई। यज्ञ आदि रुक गये और जनता में असन्तोष फैल गया । आखिर लोग मुनि याज्ञवल्क्य के पास गये और उनसे सारा वृत्तान्त कहा | मुनि याज्ञवल्क्य राजा रङ्ग की राजसभा में आये और राजा के निन्यानवें भाइयों को शाप देकर शुद्र बना दिया । रङ्ग का लड़का विशोक था, उसके बाद मधु हुवा, मधु के बाद महीधर हुवा । महीधर के सात लड़के थे । सब से बड़े का नाम बल्लभ था । बल्लभ के दो पुत्र हुए, अग्रसेन और शुरमेन । अग्रसेन ने गौड़ देश में अपना पृथक राज्य स्थापित किया । I यह लिखने की आवश्यकता नहीं कि 'उरु चरितम्' का यह वर्णन क्रुक द्वारा दिये गये वृत्तान्त से बहुत कुछ मिलता जुलता है । यह निर्देश हम पहले ही कर चुके हैं कि क्रुक के वर्णन का मुख्य आधार भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र कृत 'अग्रवालों की उत्पत्ति' ग्रन्थ है । भारतेन्दु जी ने यह पुस्तिका 'महालक्ष्मी व्रत कथा' या 'अग्रवैश्यवंशानुकीर्तनम्' के आधार पर लिखी थी । इस संस्कृत ग्रन्थ का पूर्वार्ध हमें नहीं मिल सका । पर क्रुक और भारतेन्दु जी के वर्णन से तुलना करके हम सुगमता से समझ सकते हैं, कि अग्रसेन के वंश व पूर्वजों के सम्बन्ध में हमारे दोनों संस्कृत ग्रन्थों --- उरुचरितम् और अग्रवैश्यवंशानुकीर्तनम् में विशेष मेद नहीं है 1 For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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