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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचारांग सूत्रस्य [इर्सि-कथय इसि ईषद् उवराय उपरात्र एवं एवमर्थक उ (ओ) वचाइय औपपादि (ति)क एस एष उववाय उपपात एसग एषक उक्कुडुय उत्कटुक उवस (स्स) ग्ग उपसर्ग एसणा एषणा उग्घायण उरातन उवसन्ति उपशान्ति एसिण्० एषिन् उच्चा उरचार्थक उवसम उपशम एह एध उच्चालइत्तर-1 उच्चालयितृ उञ्चालइय उच्चालयिक उवहाण उपधान ओ वाक्यपूरणार्थक उच्चावय उच्चावच उवहि उधि ओग्गह अवग्रह उवहिय उपधिक उजु-उज्जु ऋजु, अञ्जु ओह ओष्ठ उवाय उपाय उज्जुकड,-डे. ऋजुकृत, ऋजुकारी उपाय ओम अवम-हीन उवाहि उपाधि उठाइण्० उत्थायिन् ओमाण अवमान उड्ढ ऊर्व उवेहा उपेक्षा ओय ओज उव्वेग उद्वेग उण्ह ऊष्ण ओयण ओदन उसणिज उष्णीय उत्तम - ओयरिया औदर्य उसिण उष्ण उत्तर - ओसा अवश्या उत्तासइत्त० उत्त्रासयित ओक्वाइय औपपादि(ति)क उत्तिग - ओह ओघ ऋ (धातु) अच्छइ उद् उदकार्थक ए-(सर्वनाम) एहि ओहाण अवधान उदय उदक एक्क एक क (सर्वना०) के, को, का, कि, उदीण उदीचीन एग (अणेग) एक ( अनेक ) के, अकस्मात्, कंसि; केई, कोइ. एगइय एकतिक विचि, आकिंचण, कंचणं, कस्सई, उद्दवेत्त० । एगओ एकतस् कहिंचि, केह (बहु.), केय उद्देस उद्देश पगत्त एकत्व कओ कतस् उभि उद्भिद् एगन्त एकान्त कक्खड , कर्कश उभय -- एगयर एकतर कंखा कांक्षा एगया एकदा कंखिण. काक्षिन् उम्मुग्गा एगागिण्० एकाकिन् उम्मज्जा कज कार्य उन्मज्जा एगाणिय उम्मुजा कट्ठ काष्ठ उयर उदर एज वायु कड,-०८ कृत उयरिण० उदरिन् एण, इण ( सर्व०) एन-एणं, इणं कडि कटि उयाहु उताहो एत्थ (त्थं) अत्र कडुय कटुक उर उरस् एय (सर्व०) एतदर्थक–एयं, ए- कण्टग कण्टक उराल उदार याओ, एयस्स, एए, एयाई, एयानि कण्डग काण्डक उवक्कम उपक्रम एएहि, एएम कण्ड्य् (धातु) कण्डूयए उवगरण उपकरण एयावन्त०एतावन्तु कण्ण कर्ण उपचइय उपचयिक एलिक्खग ईदशक कत्थ कुत्र उवचय उपचय एलिस (अणेलि.) ईदृश (भनीद०) कत्था कुत्रचित् । उवरह उपरति एव, व एवार्थक कथय (धातु) कहिय, परिकहिज्जा उद्दवइत्त० १ उद्यापयित उम्मग्गा । उन्मन्ना For Private And Personal Use Only
SR No.020016
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Sanshodhak Samiti
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publication Year1924
Total Pages68
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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