SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( पश्चिमदिशामां गोचरी जाय, अने पश्चिमदिशामां जमण होय तो पूर्व दिशामां गोचरी जाय, एम बीजी पण दिशामां जाणवू, एटले है आचा० जमणनी जग्याए जवानो अनादर करे. ज्यां जमण होय त्यां न जवू, हवे जमण क्या क्या होय ते कहे छे, गाम ज्यां इंद्रियोनी सूत्रम् पुष्टि थाय अथवा ज्यां करो लागु पडे ते हे, तेज प्रमाणे नगर, खेर कट मडंब पतन (पाटण) आकर द्रोणमुख नैगम आश्रम 1८८०G M८८०॥ 15 राज्यधानी संनिवेश [आ बधा शब्दोनो अर्थ आचारांगना अगाउना भागमा पा० अपायेल छे] आवा स्थानमा संखडि (जमण) जाणीने जवु नहि, केवळीप्रभु कहे छे के, ते जमण कर्मोना उपादाननुं स्थान छे, अथवा बीजी प्रतिपां आदानने बदले आयतन शब्द छे. तेनो अर्थ आ छे के संखडिमां जq ते दोषोनुं स्थान छे. प्र०-संखडीमा जq ते दोपोनें आयतन केवीरीते छे ? ते कहे छे “संखडि संखडि पडियाएति"-जे जे संखडिने उद्देशीने पोते जाय, तो ते जग्याए आमांना कोइपण दोष अवश्ये लागु पडे ते बतावे छे. आधाकर्म, औदेशिक, मिश्र, क्रीत, उद्यतक, आच्छेद्य, अनिसृष्ट, अभ्याहृत आमांथी कोइपण दोपथी दोषित पोते भोजन वापरे, कारण के जमणनो करनारो एवुन मनमां धारे के, आ आवनारो साधु मारा जमणने उद्देशीने आव्यो छे, माटे मारे कोइपण ब्हाने एने आपq एम विचारी आधाकर्म दोषवाळू ४ भोजन विगेरे वनावी आपे, अथवा जे साधु लोलुपी थइने जमणनी बुध्धिए त्यां जाय, ते मूढ बनीने आधाकर्म विगेरेनुं भोजन 21 वापरे. वळी संखडि निमिते आवेला साधुने उद्देशीने ग्रहस्थ वसति (उतरवानुं स्थान) आ प्रमाणे करे ते कहे छे. अस्संजए भिक्खुपडियाए खुड्डियदुवारियाओ महल्लिय दुवारियाओ कुज्जा, महल्लियदुवारियाओ खुडियदुवारियाभो कुज्जा, समाओ सिन्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुजा, पवायाओ सिजो For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy