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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्रम् ॥७९ ३॥ | साधु ते प्रमाणे वर्ते, पण ते संलेखनाना काळमां बार वर्ष पूरा थता पहेलांज अधवचमां शरीरमा वायु विगेरेना रोकाणथी शीघ्र आचा० | जीवलेण रोग उत्पन्न धाय तो समाधि मरणने वांछतो तेना उपशमना उपायने एषणीय विधिए तेल चोळ, विगेरे करे, अने फरी | पाछी संलेखना शरु करे, अथवा आत्मानं आयु (जीवित) ने कंइ पण आयुना पुद्गलोर्नु संवर्तन (उपकमण) उत्पन्न यएलुं जाणे तो ।।७९३॥ ते संलेखखनाना तपमांज अनाकुल मतिवाळो बनीने शीघ्रज भक्त परिज्ञा विगेरेने बुद्धिमान साधु शीखवे [आदरे] (६) संलेखना दावडे शुद्ध कायवाजो बनीने मरण काळ आवेलो जाणीने | करे? ते कहे छे. । ग्राम--शब्द जाणीतो छे. पण तेनो अर्थ अहों पतिश्रय उपाश्रय बताव्यो छे, प्रतिश्रयज तेने स्थंडिल [संथारानी जग्या] छे. 15 तेने जोइने संथारो करे आवा अरण्य एटले उपाश्रयनी बहार अर्थ बताव्यो, उद्यान अथवा पर्वतनी गुफामां संथारानी जग्या प्रथम निर्जीव जुए, अने गाम विगेरेथी याची लावेला दर्भ विगेरेना सुका घासमा यथा उचित काळनो जाणनारो साधु संथारो करे, घास पाथरीने शुं करे? ते कहे छे| आहार रहित ते अनाहारी बने, तेमां शक्ति अनुसारे त्रण अथवा चारे आहारनु प्रत्याख्यान करी पंच महावतर्नु फरी स्वयं आरोपण करी बधा प्राणी समूहने खमावेलो बनी सुख दुःखमा समभाव राखी पूर्व मेळवेला पुण्यना समूहवडे मरणथी न डरतो | संथारामां पासुफेरवQ करे, परिसह उपसर्गो आवे तेने देह ममख छोडेल होवाथी सम्यक प्रकारे सहन करे, तेमां मनुष्यना अनुकूल प्रतिकूल परीसह उपसर्ग आवतां मर्यादानु उलघन न करे, तेम पुत्र खी विगेरेना सम्बन्धथी आर्त ध्यानने वश न थाय, तेमज प्रतिकूल परीसह उपसर्गोथी क्रोधथी हणायलो न थाय, तेज बतावे छे SCOCCACCHOOL For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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