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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥८६०॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेज प्रमाणे पांचमुं अध्ययन 'आवंति' नामनुं छे. तेना चोथा उद्देशामां आ सूत्र छे, "गामाणुगामं दूइजमाणस्स दूजार्थं दुष्परिकंतं इत्यादि" आ मूत्रथी 'इर्या ' समिति संक्षेपथी वर्णवी. तेथी इर्या अध्ययन रच्युं छे, तथा छट्टा अध्ययनना पाँचमा उद्देशामां आ सूत्र छे, “आ इक्ख हिय कि धम्मकामी" आधी भाषा जात अध्ययन रच्युं छे तेम तुं जाण ॥ २८९ ॥ सतिकगणि सत्त निज्जुढाई महापरिन्नाओ । सत्यपरिना भावण निज्जूढा उ धुय विमुति ॥ २९० ॥ आयारपकप्पो पुर्ण पञ्चवाणस्स तइयवत्थूओ । आयारनामधिज्जा वीसइमा पाहुच्छेया ।। २९१ ।। तथा महापरिज्ञा नामना सातमा अध्ययनमां सात उद्देशा हता, तेमांथी एकेक लेवाथी सात लीघा छे. तथा शस्त्र परिज्ञामांथी भावना अधिकार लीधो छे, तथा धुतअध्ययनना बीजा चोथा उद्देशामांथी विमुक्ति अध्ययन लीधुं छे. ॥९॥ तथा आचार प्रकल्प ते निशीथसूत्र के अने ते प्रत्याख्यान पूर्वनी त्रीजी वस्तु छे तेमां २० मुं पाहुड आचार नामनुं छे तेमांथी लीवेल छे. (आ पांचमी चूडा जुदी पाडी छे.) ब्रह्मचर्यनां नत्र अध्ययनोथी आचार अग्र (चूलिकाओ) रचेल छे. एथी निर्युहन [ रचना ] ना अधिकारथीज ते शखपरिज्ञा अध्ययनथीज ते आचार अग्र (चूला) रची छे, ते बतावे छे. अबोगडो उ मणिओ सत्यपरित्राय दंडनिक्खेवो । सो पुण विभज्जमाणो तहा तहा होइ नायन्चो ।। २९२ ।। अव्यक्त दंड निक्षेपो हतो ते बताव्यो छे, एटले माणीओने पीधारूप जे दंड छे, तेनो निक्षेप ( परित्याग ) छे, अर्थात् संयम छे, ते शस्त्रपरिज्ञा अध्ययनमां गुप्त रीते को हतो, तेथी ते संयमनेज जुदा जुदा भाग पांडीने आठे अध्यनमां अनेक For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥८६०॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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