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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥८५९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेइयकुलगणसंचे, आयरियाणं च पत्रणय मुए य । सव्वेसुऽवि तेण कथं, तबसंजममुज्जमन्तेणं ॥ १ ॥ चैत्य कुळ गण संघ आचार्य प्रवचनश्रुत, ए बधामां पण तेणे तप अने संयममां उद्यम करवायी कर्यु जाणं, माटे आ क्रियाज स्वीकारवी, कारण के तीर्थकर विगेरेए पण क्रिया रहित ज्ञानने पण अफळ छे बळी कां छे के सुबहुं पि सुमधीतं, किं काहि चरण विप्पहूण (मुक्क) स्स ? अंधस्स जह पलित्ता, दीवसतसहस्सकोडिवि ॥ १ ॥ घणाए सिद्धांत भण्य होय, पण जो चारित्र रहित होय तो ते शुं करी शके ? जेमके घरमां लाखो करोडो दीवा कर्या होय तो पण अंधो केवी रीते कार्य सिद्ध करी शके ? अर्थात् देखवानी क्रियामां विफल होवाथी तेने दीवा नकामा छे. बळी क्षायोपशमिक ज्ञानथी क्रिया प्रधान छे, एम नहि, पण क्षायिक ज्ञानथी पण क्रिया प्रधान छे, जेमके जीव अजीव विगेरे संपूर्ण वस्तु परिच्छेदक केवळज्ञान विद्यमान होय, पण ज्यां सुधी क्रिया समाप्त करनारुं अयोगी गुणस्थाननुं 'ध्यानरूप क्रियापणु' न फरसे, त्यां सुधी भवधारणीय कर्मनो उच्छेद थाय नही, अने तेनो उच्छेद न थवाथी मोक्ष प्राप्ति पण न थाय, माटे ज्ञान प्रधान नवी, | पण चरणनी क्रियामां आलोक अने परलोकना इच्छित फळनी प्राप्ति छे, माटे ते क्रियाज प्रधान फळने अनुभवे छे. आ प्रमाणे ज्ञान विना सम्यक क्रियानो अभाव छे. अने ते क्रियाना अभावथी अर्थ सिद्धि माटे ज्ञाननुं वैफल्य छे. आ प्रमाणे बने नयवाळो पोताना नयनी सिद्धि करी तेथी सामान्य बुद्धिवाको शिष्य व्याकुल मतिवाळो बनीने गुरुने पूछे छे के आमां सत्प तत्व शुं छे ? आचार्यनो उत्तर - हे देवोने प्रिय भाइ ! अमे तो कयुं छेज ? पण तुं भूली गयो ! कारण के ज्ञान तथा क्रियाना अभिप्रायो बन्ने एक बीजाने आधारेज वधा कर्म कंदना उच्छेदरूप मोक्षनां कारणो हे तेनुं दृष्टांत. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ।।८५१ ।।
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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