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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम् ॥८३७॥ ॥३७॥ तथा धूळना ढगला, जाडी रेती वेकर (वेल्ल) तथा माटीनां ढेफां विगेरेना प्रांत (तुच्छ) आसनो तथा लाकडां जेवां तेवा पडेलां | तेना उपर पोते बेसता, (१) तथा ते लाढा देशमा जे बे विभाग उपर बताव्या तेमां पाये लोकोना आक्रोश तथा कूतरांना करडवा है विगेरेना घणा प्रतिकूल उपसर्गो थया, ते बतावे छे. | जनपदते देश-अने तेमां उत्पन्न थयेला ते जानपद माणसो छे, ते अनार्य देश होवार्थी अनार्यो छे, तेथी ते दुष्टोए दांतथी करडवू, भारे दंडनो प्रहार विगेरेथी दुःख देवु ( अपि शब्दना अर्थमां अथ शब्द छे, तेथी एम जाणवू, के) त्यां भोजन पण लुखं अंतप्रांत आपता, तथा अनार्यपणाथी स्वभावथीन क्रोधी इता अने रुना अभावे घासवडे शरीर ढांकता, तेओ भगवान उपर | विरूप आचरता हता, अने शीकारी कूतराओ भगवान उपर करडवा आवता (३) अने ते देशमां भाग्येन हजारमा एक दयाळु जन हतो के जे करडवा आवेला कूतराने अटकावे, उलटा भगवानने लाकडी विगेरेथी मारीने कतराने तेना उपर दोडाववा सीत्कार (छुछु) करता के कोइ रीते आ साधुने ते कूतराओ करडे ! आवा दुष्ट अने भयङ्कर देशमां पण भगवान् छ मास सुधी रह्या वळीएलिक्खए जणा भुजो बहवे बजभूमि फरुसासी । लर्हि गहाय नालियं, समणा तत्थ य विहरिंसु ॥५॥ एवंपि तत्थ विहरता, पुट्टपुवा अहेसिं सुणिएहिं । संलुच्चमाणा सुणएहिं दुचराणि तत्थ लाढेहिं ॥६॥ निहाय दंडं पाणेहिं तं कायं वोसज्जमणगारे । अह गाम कंट्टए भगवंते, अहियासए अभिसमिच्चा ॥७॥ नागो संगामसीसे वा पारए, तत्थ से महावीरे । एवंपि तत्थ लाहिं अलद्धप्रबोवि एगया गामो ॥८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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