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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie 18 नथी. (पण चारित्र निर्मळ पाळे छे.) आचा० ४ अथवा शरण ते घर छे. ते नथी माटे अंशरण छे. अने ते संयम छे ते माटे पोते यत्न करे छे. ते वतावे छे. एमां आश्रय सूत्रम् ॥८२२॥ शंछे के भगवान अतिशय बळ पराक्रमवाळा महाबत पाळबानी प्रतिज्ञारूप मेरु पर्वते चढेला पराक्रम करे छे ? ते भगवान महा ॥८२२॥ वीरे ज्यारे दीक्षा नहोती लीधी त्यारे पण निर्दोष पासुक आहारथी निर्वाह करता हता ते संबंधी कथा कहे छे. ज्यारे भगरान महावीरना माता पिता देवलोकमां गयां त्यारे भगवान महावीरे मातानां गर्भमा जरा न हालवाथी माने अतिशय दुःख थयु हतुं है अने ज्यारे पोते हाल्या त्यारेज माताने धीरज थइ हती, तेथी ते समये अवधिज्ञाने मातानो अभिप्राय जाणानार महावीरमभुए अभिग्रह को हतो के मारा वियोगथी माता पिता कमोते न मरो, ते हेतुने ध्यानमा राखी 'मारे माता पिता जीवतां सुधी दीक्षा | न लेवी.' अने ते प्रमाणे अठावीस बरसनी पोतानी उमर थतां माता पिता देवलोकमां गया. त्यारे अभिग्रहनी प्रतिज्ञा पुरी थी एम जाणीने दीक्षा लेवानी तैयारी करी ते समये नंदीवर्धन नामना मोटाभाइ तथा ज्ञाति बंधुओए प्रभुने प्रार्थना करी के हे प्रभु 'घा उपर खार छांटवा जेवु' माता पिताना वियोगना दुःखमां तमारो वियोग न करो. भगवान महावीरे आ सांभळीने अवधिज्ञाने । जाण्यु के मारा आ दीक्षाना समयमा घणा मनुष्यो बेला थशे, अने मरी जशे, एवं विचारीने तेओने कयु के मारे केटलो काळ रोकावु पडशे ? तेओए कयु के अमने बे वरसमा शोक दूर थशे. प्रभुए कडं के ठीक छे, पण आहार विगेरे लेवु ते मारी इच्छाए यशे पण ते इच्छा तोडवा तमारे न आवq. तेओए विचार्यु के कोइ पण रीते भगवान रहो एम मानीने तेमणे हा पाडी, त्यारपछी भगवान ते वचनने अनुसारे निर्दोष आहार लइने गृहस्थपणामां पण साधु वृत्तिए हता, पछी पोतानी दीक्षानो अवसर जाणीने For Private and Personal use only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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