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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥११०३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मामां समभाव राखीश. आवो अभिग्रह लइ शरीरनी ममताथी रहित थया थका एक मुहूर्त जेटलो दिवस होतां कुमार गामे आवी पहोंच्या पछी भगवान उत्कृष्ट आलय, उत्कृष्ट विचार तेमज नेवाज संयम, नियम, संवर, तप, ब्रह्मचर्य, क्षांति, त्याग, संतोष समिति गुप्ति, स्थान कर्म तथा रूडा फळवाळा निर्माण अने मुक्तिना आत्मा पोताने भावता थका विचरवा लाग्या. एम विचरतां जे कां देव, मनुष्य तथा तिर्यचो तरफथी उपसर्ग घया ते सर्वे भगवाने स्वच्छभावमां रही अणपीडातां अदीनमन घरी अदीनवचन कायाए गुप्त रही सम्यक् रीते सह्या खम्या तथा आत्माना समभावमां रथा. आवी रीते विचरतां भगवानने चार वर्ष व्यतिक्रम्या. हवे तेरमा वर्षनी अंदर उनाळाना बीजे मासे बीजे पक्षे वैशाकमुदी १०ना सुव्रत नामना दिने विजयमुहुर्ते उत्तराफाल्गुनीना यांगे पूर्व दिशाए छाया वळतां छेले पढोरे भिकगामनी बाहेर रुजुवालिका नदीना उत्तर किनारे श्यामाक गाथापतिना काष्टकर्म स्थळमां व्यावृत्त नामना चैत्यना इशानकोणमां शाळवृक्षनी पासे अर्धा उभा रही गोदोहासने आतापना करतां थकां तथा पाणी वगरना वे उपवासे जंघाओ उंची राखी माधुं नीचे घाली ध्यान कोष्टमा रहेता थकां शुकल ध्यानमां वर्त्ततां छेवटनुं संपूर्ण प्रतिपूर्ण अव्याहत निरावरण अनंत उत्कृष्ट केवलज्ञान तथा केवलदर्शन उपन्युं हवे भगवान अर्हन्, जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी थइ देव, मनुष्य तथा असुरप्रधान (आखा लोकना पर्याय जाणवा लाग्या, एटले के तेनी आगति-गति, स्थिति, च्यवन, उपपात, खाधुं पीधुं, करेलुं करावेलं, प्रगट काम, छानां काम, बोलेलं कहेलं. के मनमा राखेलं एम भाखा लोकमां सर्व जीवोना सर्व भाव जाणता देखता थका विचरवा लाग्या. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥११०३॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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