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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - सुत्रम् জাম্বা | ॥१०९५॥ Hu१०९५॥ - - दलइत्ता जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं इत्युत्तरा० जोग० अभिनिक्रवमणाभिषाए याचि हुत्था,-संवच्छ रेण होहिइ अभिनिक्खमणं तु जिणवरिंदस्स | तो अत्थसंपयाणं पवत्तई पुन्बमूराओ ॥१॥ एगा हिरनकोडी अटेव अणूणगा सयसहस्सा । मूरोदयमाईयं दिइ जा पायरासुति ॥ २ ॥ त्तिन्नेव य कोडिसया अटासीई च हुति कोडीयो । असि च सयसहस्सा एवं संवच्छरे दिन्नं ॥ ३ वेसमणकुंडधारी देवा लोगतिया महिढाया। बोर्हिति य तित्थयरं पन्नरसमू कम्मभूमीसु ॥ ४ ॥ बंभ म य कप्पमी बोद्धब्बा कज्हराइणो मझे । लोगंतिया विमाणा अट्ठसु वत्था असंखिज्जा ॥ ५॥ पए देवनिकाया भगवं बोटिंति जिणवरं वीरं । सबजगज्जीवहियं अरिहं ! तित्थं पचत्तेहि ॥ ६ ॥ तभो णं समणस्स भ० म. अभिनिक्खमणाभिष्पाय जाणित्ता भवणवइवा० जो विमाणवासिणो देवा य देवीभो य सएहि २ रूवेहि सएहि २ नेवत्थेहिं सए० २ चिधेहि सचिट्टाए सबजुईए सव्ववलसमुदएणं सयाई २ जाणविमाणाई दुरुति सया० दुरूहित्ता अहाबायराई पुग्गलाई परिसाउंति २ अहासुहमाई पुग्गलाई परियाइंति २ उ उप्पयति उ१ उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्याए चलाए तुरियाए दिवाए देवगईए अहे णं ओर यमाणा २ तिरिएणं असखिज्जाइंदीवसमुद्दाई वीइक्कममाणा २ जेणेव जंबुद्दीवे दीवे तेणेव उवागच्छति, २ जेणेव उत्तरखत्ति य कुंडपुरसंनिवेसे तेणेव उपागच्छंति उत्तरखत्तियकुडपुरसंनिवेस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए तेणेव झति वेगेण ओवइया, तो णं सक्के देविंदे देवराया सणियं २ जाणविमाणं पट्टवेति सणियं.२ जाणविमाणं पट्टवेत्ता सणिय २ जाणविमोणाओ पच्चोरुहइ सणिय २ एगतमवकमइ एगतमवकमित्ता महया वेउचिएणं समुग्धारण समोहणइ २ एमं महं नाणामणिकणग - - - - - For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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