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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - सूत्रम् १०८६॥ - www.kobatirth.org जे कोइ संसारी जीव के साधु देखीता मनोहर विषयोथी मुंझाइने विहलथाय अथवा तेवा सुंदर विषयोना वियोगमां घेलो आचा० | थाय तेव। पुरुषने चित्तामां अपूर्व शान्ति प्राप्त करवा आ उपदेश छे के तु तारा हृदयमा आ प्रमाणे विचार, के मारो आत्मा मा । निरंतर रहेनारा जन्म मरणथी मुक्न ज्ञान दर्शनना लक्षणबाळो छे, बाकी, जे कंइ शरीर विगेरे चलायमान देखाय छे ते कर्मना में ॥१०८६॥ संयोगी मने मळेलुं छे, हुं तेनाथी जुदो छु मारुं स्वरूप चेतन छे अने शरीर विगेरे जड छे. (आ निश्चय नयनी भावना जाणवी.) आ भावनाओ रुपिओनु अंग छे अने चारित्रने आश्रयी (टेको आपनार) हे. (हवे तपनी भावना कहे छे.) किह मे हविजऽवंझो दिवसो ? किं वा पहू तवं काउं? को इह दब्वे जोगो खित्ते काले समयभावे ? ॥ ३४०॥ साधुए निर्मळ चारित्र पाळवा हमेशा चितवनकर, के विगइओ विगेरे त्यागीने मारो दिवस हमेशां क्यारे सफळ थशे ? तथा है क्यो तप करवाने शक्तिवान छ ? तथा क्या द्रव्य विगेरेमा मारो निर्वाह थशे ? आबुं चिंतव, तेमां बने त्यांमुधी साधुए द्रव्यमां #उत्सर्गथी बाल चणा विगेरे वापरवा, क्षेत्रमा ज्यां घी दुध मळे के लुखा रोटला मळे तो पण संतोषथी विहार करवो, काळमां ठंडीमां के उनाळामा विहार करवो तथा भवमा हुँ सानो होबाथी आ तप करवाने शक्तिवान छु आवी रीते द्रव्य क्षेत्र काळ भावथी विचारी| | यथाशक्ति उपकरण विगेरे जोइतांज राखीने परिसहो सहेवा तप करवो. तत्वार्थमूत्रना छठा अध्यायमा २३ मा मृत्रमा का छे । के यथाशक्ति त्याग अने तप करवो. उच्छाहपालणाए इति (एव) तवे संजमे य संघयणे । वेरग्गेऽणिच्चाई होइ चरिते इह पगयं ॥ ३४१ ॥ - - - SHRIME क ट For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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