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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AA-% A ROCHECORGICA अन्यना छ प्रकारे निक्षेपा के. नाम-स्थापना मुगम छे. द्रव्य अन्य निक्षेपामां पर शलमा जे खुलासो को छे तेम अहीं पण आचा०1४ जाणवू, अहीं परक्रिया के अन्य क्रिया कारण प्रसंगे गच्छवासीने करवी पडे तेमां जयणा रास्ववी. गच्छमाथी नीकळेलाने औषध | सूत्रम् विगेरे क्रियानुं प्रयोजन नथी. ते नियुक्तिकार बतावे छे. ॥१०७९॥ जयमाणस्स परो जं करेइ जयणार नत्थ अहिगारो। निप्पडिकम्मरस उ अनमन्त्रकरणं अजुत्तं तु ॥ ३२६ ॥ ॥१०७९॥ सत्तिकाणं निज्जुत्ती समना ।। साधुए जयणाथी काम करवू कराव, रागद्वेष न करवा, पण जीनकल्पीने ते घटतुं नथी, तेओ दवा विगेरेथी. दूर छे, 12 से भिक्खू वा २ अन्नमन्त्रकिरियं अज्झत्थियं संसेइयं नो तं सायए २॥ से अन्नमनं पाए आमजिज्ज वा० नो तं०, सेसं त चेब, एयं खलु० जइज्जासि (मु.१७४) तिबेमि ॥ सप्तमम् ॥ २-२-७॥ अन्यो अन्य एटले परस्पर क्रिया ते माधुए मांहो मांहे पण वास कारण विना चोळ, चांपवु दाबनुं विगेरे न कर. जरुर पडे करतां राग द्वेष न करगे. आप्रमाणे बीजी चुलिका समाप्त थइ. भावना नामनी त्रीजी चूलिका. बीनी कहीने हवे श्रीजी चूलिका कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध छे, के आ आचारांग मूत्रनो विषय प्रथम वर्धमान स्वामिए 3 करो, ते उपकारी होवाथी तेनी वक्तव्यता खुलासाथी कहेचा तथा पंचमहाव्रत लीधेला साधुए पिंड शय्या विगेरे ( संयम शरीर 3 RA -. For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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