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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधु साध्वीए नीचली जग्याए स्थंडिल न जq-ते बतावे छे-जे जग्यामां गृहस्था अथवा तेना पुत्रो विगेरे कंद बीज ६ विगेरे त्रणे काळमां नाखता होय, तथा गृहस्थलोक अथवा तेना पुत्रो विगेरेए शाली चोखा व्रीही मग अडद कलथी जव जवजव आचा वाव्यां होय, वावता होय अथवा वाववाना होय; अथवा ज्यां आमोक ते कचराना ढगला (उकरडा) मां घास भूमिराजीआ-भिलुक ॥१०६४॥ सूक्ष्मभूमिराजीओ विज्जल स्थाणु तथा कडय प्रगर्ता-मोटारवाडा, तथा दरीप्रदुर्ग भींतो तथा कोल्ला बुरुज आ बतावेला स्थान वखते सम हाय कोइ जग्याए विषम होय (माटो विगेरे पडवानो डर होय) तेथी तेवी जग्याए स्थंडिल जतां पोते पडी जाय नो आत्मविराधना थाय, अने वीजा जीवा नीचे चगदाइ जतां संयम विराधना थाय तथा माणसोने माटे रांधवानी जग्या (चूला) होय, अथवा भेस बळध घोडा कुकडा माकडां (वांदरा) हय लावक वट्टय तितर कबुतर कपिजल विगेरे पशु पक्षी माटे खावा पीवारों 8/ अथवा शीखवानुं के तेवू बोजु कंइ पण कार्य थतुं होय तथा ते स्थानमा तेमने रखाता होय ते जग्याए स्थंडिल जवाथी लोक | विरुद्ध प्रवचननो उपघात विगेरे थाय माटे त्यां न जवू, बळी आपघात करवानां स्थान जेमा झाडे फांसो खाय लोक मरतां होय, टर गीध विगेरे पक्षीओ पासे काया चुंयावी मरवा लोही चोपडी सुतां होय, झाड उपरथी नीचे कदीने मरतां होय, अथवा झाड 31 माफक स्थिर थइ अनशन बडे मरतां होय, मेरु (पर्वत) उपरथी पडीने मरतां होय, तथा विषभक्षण करी मरतां होय, अग्रिमां बळी3 मरतां होय, अथवा तेवां बीजां मरवांनां स्थान होय, त्यां साधुए स्थंडिल न जवू, तेज प्रमाणे आराम [जेमां काळी विशेष होय. उद्यान वन वनखंड देवल सभा परब विगेरेनी जग्यामां स्थंडिल न जाय, अट्टालक चरिय दरवाजा गोपुर अथवा तेवा गाम शहेरना । कोट कील्लानां स्थान होय त्यां स्थंडिल न जवू, तेज प्रमाणे त्रिकोग चतुष्क [ज्यां त्रण के चार रस्ता मळतां होय ] के चातारो For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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