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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ।। १०६२ ।। www.kobatirth.org | के करोळीयानां जाळां वगेरे नथी, जो इंडां विगेरे होय तो त्यां टट्टी न जाय, हवे ते साधु एम जाणे के कोइ माणसे एक अथवा | घणा साधु साध्वीने आश्रयी स्थंडिलनी जग्या बनावी होय, अथवा श्रमण माहण विगेरेने उद्देशीने बनावी होय, तो ते जग्याने | वीजा पुरुषे स्वीकारी होय के न स्वीकारी होय तो पण मूल गुणथी दोषित होवाथी तेमां उच्चार प्रश्रवण न कर. ते साधुए यावंतिक स्थंडिलमां अपुरुषांतर कृतमां स्थंडिल न जाय; पण बीजाए वार्या पछी तेनो उपयोग पोते पण करे, वळी उत्तर गुण अशुद्ध ते खरीद करी होय, बदले लीघी होय विगेरे कारणे दोषित होवाथी तेमां स्थंडिल न जाय, अथवा स्थंदि | लनी जग्यामाथी कंद विगेरेने छोकरां विगेरे बहार काढे, अथवा, ते जग्यामां कंद विगेरे नांखे तो तेमां साधुए स्थंडिल न ज तथा स्कंध पीठ मांचडो माळो अट्टप्रासाद विगेरेनी अधर जग्या के उंची जग्या के नीची जग्या ज्यां समाधिथी न बेसाय तेवी | जग्याए स्थंडिल न जनुं, तेज प्रमाणे सचित्त पृथ्वी विगेरे उपर स्थंडिल न जनुं भनी होय, सचित्त रजवाळी होय, माटी करोळीयानां जाळां, सचित्त पत्थरनी शिला, माटोनां ढेफां, धुळना कीडावाळं लाकडं के नानां जतुंथी व्याप्त करोळीयाना जाळानां समुदायथी व्याप्त होय के ते कंड़ पण अमामुक स्थान होय त्यां स्थंडिल न जं. से भि० से जं० जाणे० – इह खलु गाहावई वा गाहावइपुत वा कंदाणि वा जाव बीयाणि वा परिसाडिँसु वा परिसाडिंति वा परिसाडिस्संति वा अन्न० तह० नो उ० ॥ से भि० से जं० इह खलु गाहावई वा गा० पुता वा सालीणि वा वणवा मुगाणि वा मासाणि वा कुलत्थाणि वा जत्राणि वा जवजवाणि वा परिंसु वा पइरिंति वा परिस्संति वा अन्नयसि वा तह० थंडि० नो उ० ।। से भि० २ जं० आमोयाणि वा घासाणि वा भिलुयाणि वा विज्जुलयाणि वा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥१०६२ ॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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