SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छे, त्यां केवी जमीन उपर स्थंडील मात्रं (झाडं पेसाब कर ते बतावे छे, एना नाम निष्पन्न निक्षेपामा उच्चार पश्रवण एयुं नाम छे, तेनी निरुक्तिने माटे नियुक्तिकार कहे छे, आचा० उच्चावर सरीराओ उच्चारों पसवइति पासवणं । तं कह आयरमाणस्स होइ सोही न अइयारो ? ।। ३१२ । सूत्रम् ॥ १०६० ॥ शरीरमाथी जोरथी दूर करे. अथवा मेल साफ करे [चरे] ते उच्चार (विष्ठा) छे, तथा प्रकर्षथी श्रवे (नीकळे) ते पेसाव ९ ॥ ९०६०॥ | एकिका ( आ शब्द केटली जग्याए तेज रुपे वपराय छे, एटले निशाळमां छोकराने पेशाब करवा जत्रुं होय तो मास्टरने कहे के मास्टर एकी जाउं ? ) आ स्थंडिल तथा मात्रं केवी रीते करे तो अतिचार न लागे ते पछोनी गाथामां बतावे छे, सुणिणा छक्कायदयावरेण सुत्तभणियंमि आगासे । उच्चारविसग्गो, कायन्त्रो अध्यमत्तेणं ॥ ३२२ ॥ छ जीव निकायना रक्षणमां प्रयत्न करनार साधुए हवे पछी कहेवाता सूत्र प्रमाणे स्थंडिलमां उच्चार पश्रवण अप्रमत्तपणे करवां नियुक्ति अनुगम पछी सूत्र अनुगम कहे छे, से भि० उच्चारपासवण किरियाए उन्वाहिज्जमाणे सयस्स पायपुंछणस्स असईए तओ पच्छा साहम्मियं जाइज्जा ॥ से भि० से पु० थंडिलं जाणिज्जा सअंडं० तह० थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा ।। से भि० जं पुण थं० अप्पपाणं जात्र संतणयं तदृ० थं उच्चा० वोसिरिज्जा | से भि० से जं० अस्सिपडियाए एवं साहम्मियं समुद्दिस्स वा अस्सि० बहवे साहम्मिया स० अस्सि प० एवं साहम्मिणि स० अस्सिप बहवे साहम्मिणीओ स० अस्सि० बहवे समण० पगपि २ समु० पाणाई ४ जाव उद्देसिथं चेण्ड, तह० थंडिल्लं - पुरिसंतरकड जान बहियानीहढं वा अनी अन्नयरंसि वा For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy