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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० मकान जो अमासुक मळे, तो मळतुं होय तो पण न ले, तेज प्रमाणे बीजां सूत्रो पण शय्या माफक समजी लेवां, ते ज्यां सुधी | पाणी तथा कंदथी व्याप्त होय तो पण ते लेवां नहिं, हवे प्रतिमाना उद्देशने आश्रयी कहे छे, एटले पूर्वे बतावेला दोषोवाळां तथा हवे पछी कहेवाता दोषोवाळां पण स्थानो छोडीने चार प्रतिमाओ बडे साधु रहेवा इच्छे, ते कारणभूत अभिग्रह विशेष चार ॥१०५७।५ प्रतिमाओ छे तेनुं स्वरूप अनुक्रमे बतावे छे. (१) कोई साधुने आवोज अभिग्रह होय के हुं अचित्त उपाश्रयनुं स्थान याचीश, तेज प्रमाणे कोइ अचित भींत विगेरेने | कायावडे टेको लइश, वळी परिस्पंद करीश, एटले हाथपग विगेरेथी आकुंचन विगेरे करीश, [ लांबा पडोळा करीश, ] (२) बीजी प्रतिमामां विशेष आ छे, के आकुंचन प्रसारण तथा भींतनो टेको विगेरे लइश, पण पाद विहरण ( पगेथी चालवानुं ) मकानमां पण नहि करूं. (३) त्रीजीमां आकुंचन प्रसारण करे, पण पाद विवरण के टेको लेवानुं न करे. (४) लांबा पोळा हाथ विगेरे न वरे, तेम न चाले, न 'टेको' ले, पण ते कायानो मोह सर्वथा मुकनारो थाय, तथा बाळ दाढी मूछ लोम नख विगेरे पण न हलावे. आवी रीते संपूर्ण कायोत्सर्ग करनारो मेरु पर्वत माफक निष्प्रकंप रहे, ते बखते जो | कोइ आवीने तेना केश बिगेरे खेंचे, तो पण स्थानथी चलायमान थाय नहि; आ चारमांनी कोइ पण प्रतिमा धारण करेलो बीजी प्रतिमा घारेलाने हलको न माने, तेम पोते अहंकारी न बने तेम एवं वचन पण न बोले, के हुं श्रेष्ट छु, बीजो उतरतो छे. आ प्रमाणे प्रथम अध्ययन समाप्त धर्यु. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥१०५७॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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