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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir COR ___ आ साते पतिमा वहेनारा साधुओ जिनकल्पी विगेरे जिनेश्वरनी आज्ञामां होबाथी यथाशक्ति पाळता होवाथी वधारे पाळनारो आचा. होय ते पोताने उंचो न माने तेम चीजानी निंदा न करे. ए वधुं पिंडएपणा माफक जाणवं. । सूत्रम् सुर्य मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहि भगवं तेहिं पंचविहे उग्गहे पन्नेत्ते, तं०-देविंदउग्गहे १ राय उग्गहे ॥१०५५॥ २ गाहावइउग्गहे ३ सागारिय उग्गहे ४ साहम्मिय उग्ग० ५ एवं खलु तस्सा भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं ॥१०५५॥ (मू० १६२) उग्गहपडिमा सम्मत्ता । अध्ययनं समाप्तं सप्तमम् ।। २-१-७-२ ॥ सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने कहे के के भगवान महावीरे आ उद्देशामां बतावेलो देवेंद विगेरेनो अवग्रह सारी रीते समजीने साधुए पाळवो. (ए साधुनी साधुता छे) अवग्रह प्रतिमा नामनुं सातमुं अध्ययन समाप्त थयुं तथा आचारांगनी पहेली चूला समाप्त थइ.10 सप्तसप्तिकाख्या द्वितीया चुला । पहेली चूलिकानां सात अध्ययन कह्यां हवे बीजी चूलिका कहे छे तेनो पहेली साथे आ प्रमाणे संबंध छे. गइ चूलामा वसतिनो अवग्रह बताव्यो, ते स्थानमा रहीने केवा स्थानमा कार्योत्सर्ग तथा स्वाध्याय उच्चार पेसाब विगेरे x करवो ते अहींआ बतावे छे. आ चुलामां सात अध्ययन छे एवं नियुक्तिकार बतावे छे. सत्तिक्कगाणि इक्कस्सरगाणि पुढच भणियं तहिं ठाणं । उट्टाणे पगयं निसीहियाए तहि छक्कं ॥ ३२० ॥ सात अध्ययनोमां बीजा उद्देशा नथी, माटे एक सरवाळा छे. तेमां पहेलुं अध्ययन स्थान नामनुं छे. तेनी व्याख्या अहीं करे छे. आ संबंधे आवेला आ अध्ययनना चार अनुयोगद्वार थाय छे, [ए पूर्वे बतावेल छे ] उपक्रममा अध्ययननो अर्थाधिकार आ छे, ४ DCASTESCORE AAAAACAREE For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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