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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१०४५॥ काल अवग्रह तुबद्ध (आठमास) तथा वर्षाकाळ (चारमास) नो अपग्रह एम चे भेदे रहेआचा० हवे भाव अवाह बतावे हेमइउग्गहो य गहणुग्गहो य भावुग्गहो दुहा होइ । इंदिय नोइंदिय अत्यवंजणे उग्गहो दसहा ॥ ३१८ ॥ ॥१०४५॥ भाव अवग्रह ये प्रकारनो छे, मति अवग्रह अने ग्रहण अवग्रह हे, तेमां मति अवग्रह पण बे पकारनो छे, अर्थावग्रह अने व्यंजन अवग्रह छे, तेमां अर्थावग्रह इंद्रिय तथा नोइंद्रिय (मन) ना भेदथी छ प्रकारनो छे, अने व्यंजन अवग्रह चक्षु इंद्रिय अने मन छोडीने बाकी चार इंद्रियोनो अवग्रह छे, ते वधाए भेदवाळो दस प्रकारनो मतिभाव अपग्रह ( मतिवडे पदार्थोनो जे समान्य बोध 18/ समजाय ते ) छे, हवे ग्रहण अवग्रह बतावे छे - गहणुग्गहम्मि अपरिग्गहस्स समणस्स गहणपरिणामी । कह पाडिहारियाऽपाडिहारिए होइ ? जइयध्वं ।। ३१९ ॥ अपरिग्रहवाळो ते मुनि छे, तेने ज्यारे पिंड [गोचरी वसति [स्थान] वस्त्र पातरां लेबानो विचार थाय, त्यारे ते ग्रहण भाव अवग्रह छे. ते वखते साधुने एवी बुद्धि होवी जोइए के केवी रीते ते वसति विगेरे मने शुद्ध मळी शके ? तथा प्रातिहारिक & पार्छ अपाय ते पाट पाटला विगेरे अप्रतिहारक (पार्छ न अपाय ते गोचरी विगेरे) मने शुद्ध मळे तेमां यत्न करवो, अने प्रथम पांच प्रकारनो इंद्र विगेरेनो अवग्रह बताव्यो ते आ ग्रहण अवग्रहमां समजवो. आ प्रमाणे नाम निष्पन्न निक्षेपो थयो, हवे मूत्रानुगममा मूत्र कहे हे समणे भविस्सामि अणगारे अकिंचणे अपुत्ते ! अपम् परदत्तभोई पावं कम्मं नो करिस्सामित्ति समुट्ठाए सव्वं भंते ! SCSCRICRO RICROSSSC-SACROCARE - - - - For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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