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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra M www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० ॥१०४०॥ कहे त्यारे पण साधुए ना पाडवी. बळी ग्रहस्थ पातानी बेन विगेरेने कहे के कोरुं पातरूं न आप. पण ते पात्राने तेल घी माखण छासबढे घसीने आप, तथा त र पाणीथी धोइने अथवा काचु पणी के कंद विगेरे खाली करीने आप, अथवा कहे के हे साधु ! तमे वे घडी पछी फरीने आवो, तो | अमे अशनपान खादिम स्वादिम तैयार करीए छीए, अथवा संस्कारवाळु बनावीए छीए, तेथी हे आयुष्मन् ! हे साधु ! तमने ॥१०४०॥ | भोजन पाणी सहित पातरां आपीशू, एकला खाली पात्रां साधुने आपवाथी शोभा न वधे. आ सांभळीने साधुए कहे, के हे भव्या-18 | मन ! अमने अमारा माटे बनावेलुं के वधारे रांधेलं भोजन पाणी खावा पीवाने काम लागतुं नथी, माटे तैयार न करो, न संस्कार | रवाळ बनावो, जो पात्रां आपवानी इच्छा होय, तो एमने एमज आपो. __आq कहेवा छतां गृहस्थ हठ करी साधु माटे रांधीने के संस्कारी बनावीने पात्रां भरी आपवा मांडे तो अप्रामुक जाणीने 81 4 साधुए लेवां नहि, कदाच एमने एम पात्रां बहार लावीने मुके, तो तेने कहेQ के हे गृहस्थ ! हुं तमारा देखतांज आ पात्रां देखी हैं| लडं के तेनी अंदर नानां जंतुओ के बीज के वनस्पति होय तो केवळो प्रभु तेमा दोष बतावे छे, माटे साधुए प्रथम जोइ लेवां, अने जंतु विगेरेथी संयुक्त होय तो ते जीवो दूर करी शकाय तेम न होय तो अमासुक जाणीने पात्रां लेबां नहि, पण जो तेवां 3 जंतु विगेरे न होय तो लेवां, (ते बधुं वस्त्रएषणा माफक जाणी लेईं) आमां विशेष एटलुं छे के तेल घो नवनीत के वसा (छाश) थी धोइने ते चीकटवालं पात्रांनुं धोवण कोइ अचीच जग्या जोइने पडिलेही प्रमार्जीने परठवे. आज साधुनी साधुता छ के जयणाथी दरेक कार्य करे. For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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