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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० 119-3011 www.kobatirth.org चार देवता संबंधी भाग छे, अने वे भाग मनुष्य संबंधी छे, वे भाग असुर संबंधी छे, वखना मध्य भागमां राक्षसना भागो छे. (१) दैविक्रमां उत्तम लाभ हे, मनुष्यमां मध्यम है, आसुर भागमां मांदापणुं छे, अने राक्षस भागमां मृत्यु छे, एवं जाण - तेनी स्थापना आ प्रमाणे - लक्खण हीणों उवही, उवहणई नाणदंसण चरितं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लक्षणथी हीन जे उपधि छे, ते ज्ञान, दर्शन अने चारित्रने हणे छे, तेथी हीन होय ते लेखूं नहि, तथा प्रशस्य मानवाळु होय, पण ते आपतां दाता [देनार] नुं मन नाराज थतुं होय, तो ते साधुने कल्पे नहि. आ प्रमाणे अनल अथिर अध्रुव अधारणीय ए चार पदोथी सोळ भागा थाय छे, तेमां प्रथमना पंदर अशुद्ध छे, पण चारे मांगे शुद्ध एवो सोळमो भांगोज काम लागे. माटे सूत्रमां अलं (समर्थ) स्थिर, ध्रुव धारणीय ए चार गुणवाळु वस्त्र मळे तो लेवं कहां ले. हवे ते भिक्षु एम जाणे के मारुं वस्त्र नधुं नथी, माटे थोडा घणा पाणीथी सुगंधी द्रव्यथी थोडं मसळीने के यथुं मसळाने सुगंधीवाळु बनावे, अथवा मारुं वस्त्र नवुं न होवाथी थोडा पाणीथी घोड़ लडं, एवं पण न करे. अर्थात् आ बने पाठो जिनकल्पीने आश्रयी है. के भिक्षुने कपडुं मेलना लीधे गंधातु होय तो पण ते मेल दूर करवा सुगंधी द्रव्यवडे के पाणीवडे धुवे नहि, पण | स्थविरकल्पीने एटलं विशेष छे के सुगंधीवाळु बनाववा माटे नहि, पण लोकोनी निंद दूर करवा तथा रोगादिना कारणो दूर करवा मासुक पाणी विगेरेथी मेल दूर करवा यतनाथ धुवे पण खरी. हवे धोयेलां कपडांने यतनाथी सुकाववानी विधि कहे छे. से भिक्खू वा० अभिकंखिज्ज वत्थं आयावित्तए वा प०, तहप्पगारं वत्थं नो अनंतरहियाए जाव पुढवीए संतणए आया For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥१०३०॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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