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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharva Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) उद्दिष्ट में पूर्व जे वस्त्र संकल्प्यु छे, ते याचिश, (२) प्रेक्षित-में पूर्वे जे देख्यु छे, तेज याचीश पण बीजूं नहीं. (३) अंतर परिभोग अथवा उत्तरीय परिभोगवडे शय्यातरे वसने पहेरीने वापरी नांख्या जेवू करी दीधुं होय ते लइश. (४) जे तद्दन फेंकी का / सूत्रम् देवा जेवू वस्त्र होय तेने याचिश. आ उपर बतावेलां चार सूत्रोनो समुदाय अर्थ छे. आ चारे प्रतिमाओनी बाकीनी विधि पिढेपणा ॥१०२८॥ हमाफक जाणवी. (स्थविरकल्पीने चारे कल्पे, जिन कल्पीने पाछळनी बेज कल्पे, पण ते बधा जिनेश्वरनी आज्ञामां होवाथी | ॥१०२८॥ व परस्पर निंदे नहि.) A (णं वाक्यनी शोभा माटे छे) हवे साधु वस्त्र शोधवा जतां कोइ गृहस्थ एम वायदो करे, के तमे मास, दस दिवस के पांच दिवस पछी आवशो, तो हुं आपीश. आयु कहे तो साधुए ते स्वीकारवु नहि, पण कहेवु के आप, होय तो हमणांज आपो, अमे। ६ वायदानुं स्वीकारता नथी. फरीथी गृहस्थ कहे के तो थोळीवार पछी आवजो हुँ आपीश, ते पण स्वीकार, नहि. कहेवू के भाइ! 8 आपq होय तो हमणां आपो, ते वखते मृहस्थ पोतानी बेन विगेरेने बोलावी कहे, के वस्त्र घरमा छे ते लाव, आपणे साधुने ते वस्त्र आपी दइए अने आपणा माटे पाणी विगेरेनो आरंभ करीने पछी आपणे बनावी लइशृं. आq वस्त्र 'पश्चात् कर्म' ना भयवाळू होवाथी मळतुं होय छतां पण लेवू नहि. तेज प्रमाणे गृहस्थ कहे, के आ वस्त्र स्नान करी सुगंधी द्रव्यवडे सुंदर बनावी आपीए, न ते सांभळीने साधुए ना पाडवी, छतां हस्थ हठ करीने सुगंधीवाळु बनावा जाय तो लेवु नहि. M एज प्रमाणे गृहस्थ पाणीथी धोइने आपवा कहे, तो एमने एम याचवू, पण ते हठ करे, तो ते ले, नहि. अथवा गृहस्थ 18| कहे के तेमां कंद बिगेरे छे, ते दूर करीने वस्त्र आपीए, ते वस्त्र मळे तो पण लेवू नहि. बळी ते गृहस्थ निर्दोष बस्त्र आपे, तो CRAC-CX For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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